परमात्मा उत्तराध्यन सूत्र की आराधना में कहते हैं कि जो मां-बाप और गुरु को फूल से शूल के समान बनने को मजबूर करते हैं, जिनके अंदर गुरु और मां-बाप की कृपा नहीं है, इससे बढ़कर कोई गुनाहगार नहीं है। जो वरिष्ठजनों की कृपा ग्रहण करने में समर्थ है वह कठोर-से कठोर गुरु और मां-बाप को भी कोमल बना देता है। कंकर और बीज दोनों को पानी देने पर कंकर से तो कंकर का जन्म नहीं होता जबकि बीज अपने समान अनन्त बीजों को जन्म दे देता है। जिस बीज में पानी ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती है वह कभी अंकुरित नहीं हो पाता। इसी प्रकार इस दुनिया में आशीर्वाद मांगते तो बहुत लोग हैं लेकिन वे ग्रहण नहीं करते। अगर परमात्मा का आशीर्वाद ले पाए तो लोहा भी सोना बन जाता है।
गुरु, मां-बाप और परमात्मा का आशीर्वाद लेने के लिए कोई शर्त नहीं होती। बच्चा प्रणाम करे या न करे वे उसे सदैव आशीर्वाद की नजरों से ही देखते हैं। ऐसे मां-बाप को बुरी नजरों से देखने को जो मजबूर करता है उससे बढ़कर इस दुनिया में कोई पापी नहीं है। जिसने तीर्थंकर का प्रसाद ग्रहण किया वही तीर्थ बना है और जिसने ग्रहण नहीं किया वह स्वयं तकलीफों में रहा और दूसरों को भी तकलीफें दी है। जिसने आशीर्वाद लिया है वह कभी बददुआ दे ही नहीं सकता है। जिसके दिल में श्रद्धा भरी होती है वही आशीर्वाद लेने, उसे संग्रहित रखने और फलित करने का सामथ्र्य रखता है। सौभाग्यशाली हैं वे लोग जिन पर बड़े हुकुम चलाते हैं।
समाचारी का विधान है कि गुरु और वरिष्ठजन जब कुछ कहे तो एक ही शब्द मन में होना चाहिए कि तथास्तु, जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा। इसे वही व्यक्ति स्वीकार कर सकता है जिसका दिल फूल जैसा कोमल है। स्वजनों के सामने कठोर बनने वाले दुनिया के सामने कोमल बन जाते हैं। इससे घर में तो आपकी बात तो मान ली जाएगी लेकिन अपनी हर सांस में आशीर्वाद देने वाले मां-बाप और स्वजन बाहर कहीं नहीं मिलेंगे।