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सम्यक पुरुषार्थ से ही मिलेगी सफलता

locationचेन्नईPublished: Nov 02, 2018 01:06:43 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा संसार का कोई भी जीव श्रम और पराक्रम किए बिना नहीं रहता है

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सम्यक पुरुषार्थ से ही मिलेगी सफलता

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा संसार का कोई भी जीव श्रम और पराक्रम किए बिना नहीं रहता है लेकिन श्रम और पराक्रम भी यदि सम्यक हो सपने पूरे होते हैं और मिथ्यात्व पुरुषार्थ से सपने टूट जाते हैं। जीवन की सभी समस्याओं का समाधान करने के लिए ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप को जानें। परमात्मा द्वारा बताए गए ७१ बोलों में से यदि एक की भी आराधना कर ली जाए तो बाकी सभी आपके जीवन में साकार होने लग जाएंगे। मन, वचन काया और योग को हिंसामुक्त करेंगे तो अन्य भी स्वत: मुक्त हो जाएंगे।
मंजिल पाने के लिए सभी प्रयास करते हैं और लम्बे रास्तों पर भी चलते हैं लेकिन प्रायश्चित नहीं करने के कारण सभी को प्राप्त नहीं होती। परमात्मा ने उत्तराध्ययन सूत्र में सीधे सवाल-जवाब और कसौटी दी है, जिस पर स्वयं को परखें। यहां अपनी गलती को सुधारकर सही परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। परमात्मा का ज्ञान शत प्रतिशत शुद्ध अध्यात्म है जिसे कोई भी नास्तिक, वैज्ञानिक, समाजशास्त्री या सामान्य जन भी स्वीकार कर सकता है।
अपने जीवन का समाधान चाहिए तो मिलेगा ही, ऐसी मन की दृढ़ सोच बनाना सामायिक है। इसके लिए बंधनों को तोडक़र अपना आत्मस्वरूप पहचानें। परमात्मा कहते हैं कि भवबंधनों से मुक्त होने की मन में तड़प या संवेग हो जाए तो उसी जन्म में मोक्ष मिल सकता है। जिनके पास सफल होने का कोई विकल्प ही नहीं था वे भी अपने संवेग के बल पर शिखर को छू पाए। जहां से लौटकर जाने का रास्ता बंद हो जाए तो वहां जीता जा सकता है। हमारी एक गलती से अनेकों गलतियां और अनेकों बंध हो सकते हैं और संवेग से इनको समाप्त किया जा सकता है। अनाथीमुनि की भांति संवेग के बल पर मन की सारा नकारात्मकताएं दूर कर आत्मा की शक्ति जाग्रत होती है, समस्याओं का समाधान और मोक्ष मार्ग मिलता है।
जिसके मन में श्रद्धा का जन्म हो जाए वह सुविधाओं की तरफ नहीं दौड़ता, व्याकुल नहीं होता, सुखों के लिए समझौता नहीं करता। ऐसे व्यक्ति को सुख मिलते हैं लेकिन उनके लिए व्याकुल नहीं होता। भौतिक सुख किसी को भी पूर्ण नहीं मिलते, एकमात्र श्रद्धा का सुख ही पूर्ण होता है। किसी की सेवा यदि अपना दायित्य और कर्तव्य समझकर की जाए तो मात्र संसार का बंध और संसार का सुख मिलेगा और यदि किसी की सेवा श्रद्धापूर्वक की जाए, उसमें स्थित परमात्मा की सेवा समझकर की जाए तो उसका तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया जा सकता है। इसमें मात्र अहोभाव का ही अन्तर है, इसे समझें।
जीवन की सारी बाधाओं से मुक्त होना है तो स्वयं की आलोचना करें, इससे दूसरों पर आश्रित और भ्रम की स्थिति मिट जाएगी।
परमात्मा कहते हैं कि यह संपूर्ण चराचर जगत निरंतर परिवर्तित हो रहा है, यह परिवर्तन ही समय है, इसे देखकर स्वयं को बदलें। इस परिवर्तन को देखनेवाला समय और काल की प्रतिलेखना कर ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है। अपने जीवन में बुरे विचारों से लडऩे से अच्छा है कि उनके आने के रास्तों को ही बंद कर दिया जाए तो जीवन में पाप, क्रोध, बीमारियां और दु:ख आए ही नहीं।
आज के समय में सभी को ज्ञान, दर्शन, चरित्र की जरूरत है। इसके लिए सबसे सरल उपाय है परमात्मा की स्तुति। इससे उत्पन्न मांगल्य से वह मोक्ष और वैमानिक देवगति को प्राप्त करता है। दूसरों को यदि पनिशमेंट देंगे तो संसार बढ़ेगा और स्वयं को देंगे तो पापकर्म और आत्मा की शुद्धि होकर कर्मों का क्षय होता है। प्रायश्चित और क्षमापना से जीवन में आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए, सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव आए तो ही सफल है।

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