उन्होंने कहा कि बोले गए शब्द के प्रभाव को निष्पक्ष रूप, उचित मानकों से आंका जाना चाहिए। उन लोगों की तरह नहीं जो प्रत्येक दृष्टिकोण में शत्रुतापूर्ण खतरा पैदा करने की कोशिश करते हैं, अन्यथा भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार खतरे में पड़ेगा और स्वतंत्रता केवल कागज में ही रह जाएगी। उल्लेखनीय है कि दस साल पुराने देशद्रोह के एक मामले में गत ५ जुलाई को एमपी-एमएलए से जुड़े मामलों की विशेष कोर्ट ने वाइको को एक साल के कारावास और दस हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी। वाइको ने इस निर्णय पर अपील की बात कहते हुए जमानत की याचिका लगाई थी। जिसके बाद उन्हें जमानत भी मिल गई थी। जज जे. शांति ने याचिका को स्वीकार करते हुए सजा को एक महीने के लिए रोक दिया था।
वाइको पर दर्ज यह मामला 2009 का है। एक पुस्तक विमोचन समारोह में उन्होंने ईलम में क्या घट रहा है उस पर भाषण दिया था। भाषण के दौरान वाइको ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत देश को अखण्ड और संप्रभु रहना है तो श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ युद्ध को रोका जाए। चेन्नई की थाउजेंड लाइट्स पुलिस ने वाइको के इस भाषण की रिकॉर्डिंग सुनकर आइपीसी की धाराओं 124 ए और 153 ए के तहत मुकदमा दर्ज किया था। विशेष कोर्ट की जज ने उनको आइपीसी की धारा 124 ए के तहत दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई।