अपने अनुभव साझा करते हुए बिरेंद्र कुमार ने कहा कि जब वह विशाखापट्टनम में थे तभी उन्होंने वैसे लोगों का सम्मान करना शुरू कर दिया था। इस शुरुआत के बाद काफी लोगों की रुचि बढऩे लगी और बच्चों को बचाने वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। यही प्रयास में अब हम दक्षिण रेलवे में शुरू किया है। यहां हमने इसमें एक नई चीज जोड़ी है जिसमें न केवल बच्चों को बचाने वाले ड्यूटी में बेहतर प्रदर्शन, बेहतर काम करने वाले लोगों को भी आरपीएफ अपनी ओर से सम्मानित करता है।
मानव सेवा भगवान की सेवा
इस मौके पर आरपीएफ के उप मुख्य सुरक्षा आयुक्त लुइस अमुधन ने कहा मानव की सेवा की भगवान की सेवा है। उन्होंने कहा बच्चों की तस्करी आजकल केवल दिहाड़ी मजदूरी व यौण शोषण के लिए नहीं होती, बल्कि महत्वपूर्ण अंग निकाल कर बेचने व कई अन्य कामों के लिए होती है। इन बच्चों को अपराध और आपराधिक कृत्यों के लिए भी इस्तमाल में लाया जाता है। इसलिए यह केवल आरपीएफ, पुलिस की ही जिम्मेदारी नहीं बनती बल्कि आम लोगों को भी इसमें हिस्सेदारी निभानी चाहिए।
इस मौके पर बिरेंद्र कुमार ने चेन्नई, पालघाट, सेलम, मदुरै, त्रिवेंद्रम और त्रिची से २० आरपीएफ कर्मियों को बच्चों को तस्करों के चंगुल से बचाने के लिए सम्मानित किया गया। इस मौके तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए बच्चे भी वहां मौजूद थे, जिन्हें लुइस अमुधन ने सर्टिफिकेट प्रदान किया। इस मौके पर एके प्रीत समेत आरपीएफ के कई वरिष्ठ कर्मी मौजूद थे।