संत व साधुता का सार है संयम व शांति
वेलूर. यहां स्थित शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा नौ दिवसीय नवपद की आराधना पर्व के अवसर पर साधु-भगवंतों को याद करने, श्रमण व वंदन करते हैं। साधु कहावन काफी कठिन है। ज्ञान दर्शन से भरपूर, संयम व तपस्या में लीन एवं 27 गुणों से युक्त ही साधु व संत होते हैं। संत व साधुता का सार है संयम एवं शांति। साधु उसी को कहते हैं जो लेना छोड़कर सिर्फ देना ही जानते हैं। जिनमें शांति, सहनशीलता, सौम्यता, संयम, ज्ञानी एवं न कोई आशा रखे व न कोई मोह वही साधु व संत होते हैं। ज्ञान के सिवा कोई कार्य न करे और 24 घंटे में 12 घंटे तक मौन रहे। हजार गालियां सुनकर भी शांत रहे। कुछ नहीं मिले तो भी ठीक, पकवान मिले तो भी ठीक, रूखा-सूखा मिले भी तो ठीक वही संत हैं। रूठे हुए को मनाते हैं, टूटे हुए को जोड़ते हैं, झगडे को बढ़ाने के बदले मिटाने व फालतू की पंचायत में नहीं पड़ते, साधुवाद वाणी बरसाने वाले संत कहलाते हैं। साधुगण रूखा-सूखा खाकर, तपस्या करते हैं जिनका माथा, ललाट एवं चेहरा हमेशा चमकता रहता है, ऐसे संतों के सान्निध्य में रहने वाले श्रद्धालुओं की बीमारियां भी भाग जाती है। संतों की प्रवचनों को श्रद्धापूर्वक सुनें व अमल करें और उनके बताए धर्म के मार्ग पर चलें। मनुष्य को अंत्यत दुर्लभ मानव जीवन मिला है जिसका उपयोग दान और सद्भाव में करें। संचालन संघ मंत्री धर्मचन्द छोरलिया ने किया। रविवार को आचार्य भूधर का जन्म एवं स्मृति दिवस मनाया जाएगा।