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पारिवारिक भाव के साथ एकता की मिसाल

locationचेन्नईPublished: Oct 19, 2018 11:04:10 am

Submitted by:

Ritesh Ranjan

सास-बहु व मां-बेटी एक ही मंच पर -चार साल से आयोजन कर रही खेतेश्वर महिला मंडल

Culture,integration,Dance,

पारिवारिक भाव के साथ एकता की मिसाल

चेन्नई. कभी गुजरात तक सीमित रहा गरबा आज देश भर में लोकप्रिय हो चुका है। दक्षिण भी इससे अछूता नहीं रहा है। नवरात्र के दिनों में तमिलनाडु में भी गरबा एवं डांडियां धूम देखी जा सकती हैं। चेन्नई महानगर के हिंदी बाहुल्य इलाके साहुकारपेट में भी डांडिया एवं गरबा का आयोजन जगह-जगह देखने को मिल रहा है। कई समाज, सभा व संस्थानों की ओर से भी इनका आयोजन हर वर्ष किया जाने लगा है।
साहुकारपेट के समुद्र मुद्दली स्ट्रीट स्थित खेतेश्वर भवन में पिछले चार वर्ष से खेतेश्वर महिला मंडल की मेजबानी में गरबा एवं डांडिया का आयोजन किया जा रहा है। कमलादेवी पुखराज ओडवाड़ा कार्यक्रम की मुख्य संयोजिका है। इसके साथ ही मंडल की चन्द्रादेवी, पोषुदेवी, इन्द्रादेवी, नर्मदादेवी के साथ ही अन्य महिलाओं का सहयोग रहता है। हर दिन शाम के समय गरबा व डांडियों की प्रस्तुति के साथ ही कार्यक्रम में विशेष सहयोग करने वाली महिलाओं का सम्मान भी किया जाता है। साहुकारपेट के विभिन्न स्थलोंं पर नवरात्र के दौरान ऐसे आयोजन हो रहे हैं। मां को खुश करने के लिए महानगर में वैसे तो कई जगह गरबा हो रहे हैं लेकिन खेतेश्वर महिला मंडल की सदस्याएं एक ही पोशाक में पारम्परिक तरह से नृत्य की प्रस्तुति देती है। गरबा खेलने की एक वजह यह है कि मार्कंडेय पुराण के अनुसार मां दुर्गा ने राक्षसों को मारकर ध्यान मग्न होकर आनन्द मुद्रा में हाथ में अग्नि लेकर कुछ कदम चले थे। इस समय अन्य देवता मां की स्तुति कर रहे थे। इसलिए भक्त लोग मां दुर्गा के भजन एवं गीतों पर नृत्य करते हैं।
बढ़ा हैं दायरा
खेतेश्वर महिला मंडल की मुख्य संयोजिका कमलादेवी ओडवाड़ा कहती है, नवरात्र पर नौ दिनों तक मां की पूजा व आराधना की जाती है। नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। जिसे समूची मंडल की सदस्याएं उत्साह के साथ मनाती है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए गरबा नृत्य एवं डांडिया रास का आयोजन पिछले चार साल से किया जा रहा है। अब तमिलनाडु में भी नवरात्र के दौरान गरबा, डांडियां एवं भजनों की गूंज विभिन्न स्थानों पर सुनाई देती है। नवरात्र के दौरान डांडियों की खनक व गरबा गीत का दायरा विस्तृत हुआ है। सुदूर दक्षिण में आकर प्रवासी राजस्थानी परिवार के सदस्य गरबा व डांडिया में विशेष रूचि ले रहे हैं। माता की पूजा के बाद उनको खुश करने के लिए भजन-कीर्तन भी किए जाते हैं। ऐसे में माता रानी के भजनों एवं गीतों पर नृत्य किया जाता है।
श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों का सम्मान
वे कहती है, इस कार्यक्रम में हर आयु की महिलाएं शरीक हो रही है। सास-बहु के साथ-साथ नृत्य देखने को यहां मिल रहा है तो मां-बेटियों को एक साथ यहां गरबा व डांडियां खेलते देखा जा सकता है। यह परिवार की आपसी एकता की मिसाल है। गरबा व डांडिया के श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली महिलाओं का भी सम्मान मंडल की ओर से किया जा रहा है।
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पर्व हमें एकता का संदेश देते हैं। नई पीढ़ी को पर्व से परिचित कराना जरूरी है। इस कारण इस तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन जरूरी है। इस तरह के आयोजन से मेल-मिलाप में बढ़ोतरी होती है। साथ ही हम एक-दूसरे के अधिक नजदीक आ सकते हैं। परिवार के साथ ऐसे आयोजनों में शामिल होते हैं। ऐसे पर्व हममें खुशी का संचार करते हैं।
-धन्नु, छात्रा।
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ऐसे आयोजनों के माध्यम से हम हमारी संस्कृति को जीवंत बनाए रख सकते हैं। अब समूचे तमिलनाडु में नवरात्र एक प्रमुख पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है। न केवल साहुकारपेट बल्कि महानगर के कई इलाकों में नवरात्र के दिनों में भजनों के साथ ही कई कार्यक्रम लगातार हो रहे हैं। इससे इस पर्व की महत्ता और बढ़ गई है।
-पिन्टू, छात्रा।
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गरबा व डांडिया खेलना अच्छा लगता है। इससे आपस में मेलजोल बढ़ता है। हमारी संस्कृति के लिए भी यह अच्छा हैं। ऐसे आयोजन निरंतर होते रहने चाहिए। दूसरों को गरबा खेलते देख मैंने भी गरबा खेलना सीख लिया।
-प्रेरणा, छात्रा।

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