उन्होंने कहा कि हम गलत नीतियों को रोक नहीं पा रहे हैं। इस पर नियंत्रण हमारे हाथ में है। इसके लिए हमें आरटीआइ का उपयोग करना चाहिए। हमारी भागीदारी बढ़ानी होगी। उन्होंने अभिभावकों को कर्तव्य बोध कराते हुए कहा कि हम अपने घर में ही अकेले हो गए हैं। हम दायित्व भूल गए हैं। बच्चों के लिए हमारे पास समय नहीं है। आज की शिक्षा उन्हें मुझे तक सीमित कर रही है। वे अपने आप में सिमटते जा रहे हैं। शिक्षा ने नकारात्मक विचार पैदा किया है। इसके कारण ही ईर्ष्या, द्वेष के भाव बढ़ रहे है, मानवता का ह्रास हो रहा है। कोठारी ने कहा हमें जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदलना होगा। समाज को देने का काम करना होगा। समाज के लिए जागरूक रहते हुए उसके लिए खड़ा होना होगा। उन्होंने कहा कि पेड़ बनना ही बीज की सार्थकता है। हमें पेड़ बनना है। जिसने अपने अस्तित्व का मोह छोड़ा है उसी ने जीना सीखा है। इससे पहले राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य प्यारेलाल पितलिया, प्रवीण टाटिया, डी.जी.वैष्णव कालेज के सचिव अशोक मूंदड़ा एवं राजस्थानी एसोसिएशन तमिलनाडु के अध्यक्ष मोहनलाल बजाज ने अपने विचार व्यक्त किए।