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कुछ न मिलने के कारण अपने मन की शांति न गंवाएं

locationचेन्नईPublished: Oct 17, 2018 12:37:19 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

– जरूरत पडऩे पर पराए नहीं, अपने ही आते हैं काम- कल उत्तराध्ययन का भव्य वरघोड़ा

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कुछ न मिलने के कारण अपने मन की शांति न गंवाएं

चेन्नई. मंगलवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने आचारांग सूत्र में द्रुपद और द्रोण का प्रसंग बताते हुए कहा कि बिना सम्मान को चोट पहुंचे केवल दो ही जगहों से मिल सकता है, एक तो परमात्मा और दूसरा मित्र से। हमें जो भी प्राप्त हुआ है वह इस संसार से ही हमें प्राप्त हुआ है, अच्छा-बुरा सभी कुछ। जिन दु:खों से हम स्वयं दु:खी होते हैं, वैसे कष्ट किसी अन्य को न मिले ऐसा प्राय: करने वाला व्यक्ति सम्यक आत्मा होता है और जो ऐसा नहीं सोचता वह शैतान बनता है। जब व्यक्ति सामथ्र्य होते हुए भी दूसरों के काम नहीं आता है तो उसकी सारी शालीनताएं बेकार हो जाती हैं, जिस प्रकार द्रोणाचार्य एकलव्य को शिष्य बना सकते थे लेकिन नहीं बनाते हैं और उसे कुछ विद्या नहीं सिखाई फिर भी उससे गुरु दक्षिणा मांगते हैं। संसार में श्रद्धा और सम्मान देनेवाले मिलते हैं लेकिन उसे प्राप्त करने की योग्यता वाले कम ही होते हैं। द्रोण एकलव्य जैसे योग्य व्यक्ति को अपना शिष्य नहीं बनाते हैं और उसके सम्मान पाने के लिए योग्य नहीं होते हैं। वे उसकी श्रद्धा को स्वीकार नहीं करते हैं। जब द्रोण को नहीं मिला तो उसने द्रुपद पर गुस्सा किया और वैर का चक्र चालू हो गया। लेकिन एकलव्य को मनचाहा नहीं मिला तो उसने स्वीकार कर लिया, शांत रहा। दाता सदैव स्वतंत्र है, वह ना देना चाहे तो भी उस पर मांगनेवाले को हुक्म, गुस्सा और क्रोध करने का अधिकार नहीं है। मित्र से दुश्मनी के कारण द्रोण अपने प्रिय शिष्य अर्जुन से भी युद्ध करने को तैयार हो जाता है।
परमात्मा कहते हैं कि जो दूसरों को देर रहा है, लेकिन आपको नहीं दे रहा तो आपकी परेशानी बढ़ जाती है, तुलना करने से मन की बीमारी बढ़ती है। परमात्मा कहते हैं कि तू वहां से नाराज होकर आएगा तो बुरी ऊर्जा वहां से लेकर आएगा और वह तुम्हारे सारे काम बिगाड़ देगी। यदि आस्था को चोट भी पहुंची हो तो भी शांत रहेंगे तो गहरी साधना और भक्ति कर पाएगा। यदि भक्ति अनजानी रह जाए तो भी परमात्मा का मंत्र है कि मन में अशांति न लाएं। क्षमापना करके नकारात्मकता से तो बच जाओगे लेकिन वैर के बंध से नहीं बच पाओगे। अपनी खुशी को तो अपने पास रखो, कुछ प्राप्त नहीं होने के दु:ख, क्रोध और क्षोभ में अपनी खुशी को तो बनाए रखो, अपने मन की शांति को तो मत गंवाओ।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि नमस्कार महामंत्र की आराधना में महामंत्र के चार पर- ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप से पांच पदों का जन्म होता है। इनकी आराधना नवपद आयंबिल ओली में होती है। पांच दिन पांच प्रकार के रंग का आहार और चार दिन श्वेत रंग का आहार करते हैं। ये चारों पद एक दूसरे के पूरक हैं, किसी एक को ग्रहण करोगे तो बाकी के अपने आप आ जाएंगे। इन चारों के कारण ही साधना सफल होती है। नहीं तो गौशालक के समान बिना श्रद्धा और आस्था के किया गया तप व्यर्थ हो जाता है। ऐसे चार पदों की आराधना को अपनाएं और अपने अन्तर की शक्ति को जाग्रत करें। जिन परमात्मा परमेश्वर ने पंच परमेष्ठि का रास्ता हमें दिखाया है उस मार्ग पर चलें। यह भक्ति और शक्ति का स्रोत है। अनन्त, आचार्य, साधु, उपाध्याय और तीर्थंकर भगवंतों की शक्ति को ग्रहण करने का समय है। मैनासुंदरी और श्रीपाल ने जैसी आराधना की है वैसी नवपद की आराधना कर स्वयं को धन्य करें।
तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि व्यक्ति ऐसी साधना करता है कि लोग उसे देखकर उससे जुड़ जाते हैं। वह व्यक्ति दूसरों को अनेक वर्षों तक प्रेरणा देता है। तीर्थंकर भगवंत ऐसा धर्म उपदेश देते हैं कि सभी भवि जीव अनन्त सुख पाते हैं और मोक्ष को प्राप्त होते हैं। वे जिन रास्तों पर चलते हैं वे राजमार्ग बन जाते हैं। उन्होंने श्रीपाल और मैनासुंदरी के बारे में बताते हुए कहा कि आज से शुरू हुई नवपद आयंबिल ओली की आराधना उनकी भांति करें कि हमारा तप भी दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाए। जीवन में ऐसा हो जाए तो आपकी साधना सफल हो जाएगी। हमें स्वजनों की उपेक्षा और परायों से ज्यादा प्रीति का व्यवहार नहीं करना चाहिए अन्यथा घर-परिवार में विद्रोह होना निश्चित है और हमारा जीवन कष्टों का घर बन जाता है। जरूरत पडऩे पर पराये नहीं अपने ही काम आते हैं।
धर्मसभा में तपस्वी रामचन्द्र माली ने ९ उपवास और पिंकी भंडारी ने ८ उपवास के पच्चखान लिए। चातुर्मास समिति के अध्यक्ष नवरतनमल चोरडिय़ा, महामंत्री अजीत चोरडिय़ा सहित अन्य पदाधिकारियों ने तपस्वीयों का सम्मान किया। ललिताबाई जांगड़ा से प्रेरित १८ स्थानीय लोगों ने आजीवन मांसाहार त्याग की शपथ ली।
१८ अक्टूबर, गुरुवार को प्रात: ८ बजे सी.यू.शाह भवन, पुरुषावाक्कम से उत्तराध्ययन का भव्य वरघोड़ा निकाला जाएगा, जो एएमकेएम पहुंचेगा। १९ अक्टूबर से उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन प्रात: ८ से १० बजे तक होगा।
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