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चेन्नई

आध्यात्मिक सुख ही है जीवन में प्रमुख

आचार्य महाश्रमण ने ‘ठाणं’ आगम के सूत्रों की व्याख्या की

चेन्नईSep 23, 2018 / 05:34 pm

Ashok Singh Rajpurohit

acharya mahasharman pravachan

आध्यात्मिक सुख ही है जीवन में प्रमुख

चेन्नई. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने शनिवार को ‘ठाणंÓ आगम के सूत्रों को व्याख्यायित करते हुए कहा कि आदमी संसार में भोग भोगता है। इन्द्रिय सुखों की पूर्ति के लिए आदमी कितना प्रयास करता है लेकिन यह सुख अल्पकालिक होता है जो कुछ क्षण सुख देने वाला और लंबे समय तक दु:ख देने वाला होता है। दुनिया में कोई और सुख है तो वह आध्यात्मिक सुख है। साधु को अपने जीवन में आध्यात्मिक सुख को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।
तेरापंथ के संस्थापक आचार्य भिक्षु भौतिक सुखों का त्याग कर आध्यात्मिक सुख की ओर आगे बढ़े। आज के दिन आचार्य भिक्षु ने अनशन में आत्मसमाधि की अवस्था में मृत्यु का वरण किया। उनका जीवन असाधारण और विशिष्ट था। उनके जीवन में वैराग्य भाव, वैदुष्य आदि का अवलोकन किया जा सकता है। उनमें उच्च कोटि की साधना थी। उनका अभिनिष्क्रमण भी वैराग्य की भावना से ही हुआ था। आचार्य भिक्षु ने जिसे पैदा किया, पाला, पोसा आज उसी धर्मसंघ में हम साधना कर रहे हैं, मानों हम उनकी संतान हैं। गुरुदेव तुलसी ने लिखा कि आचार्य भिक्षु में आचार की ऊंचाई तो साधना की गहराई थी। उन्होंने इस दौरान ‘ज्योति का अवतार बाबा, ज्योति ले आयाÓ जैसे प्रासंगिक गीतों का भी आंशिक संगान किया। आचार्य भिक्षु को श्रद्धाजंलि देते हुए उन्होंने स्वरचित गीत ‘भिक्षु को वन्दन बारम्बारÓ गीत का संगान किया।
इससे पहले साध्वीप्रमुखा के मंगल महामंत्रोच्चार से 216वें भिक्षु चरमोत्सव की शुरुआत हुई। तेरापंथ युवक परिषद व किशोर मंडल-चेन्नई ने सामूहिक रूप में गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा ने कहा कि आचार्य भिक्षु एक ऐसा नाम है जो कानों में जाते ही असीम आस्था पैदा करता है। वे एक क्रांतिकारी पुरुष थे। उन्होंने जीवन में कंटीला रास्ता अपनाया और ऐसी क्रांति की कि वह पथ फूलों का पथ बन गया। हम उनका आस्था के साथ वंदन करें और उनका जीवन हम सभी का पथ आलोकित करता रहे। मुख्यनियोजिका ने अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु आध्यात्मिक पुरुष थे। उन्होंने राग-द्वेष को शांत करने की साधना की।
मुख्यमुनि ने कहा कि तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक भिक्षु के जीवन में मेरु-सी ऊंचाई और सागर-सी गहराई थी। कार्यक्रम के अंत में आचार्य सहित चतुर्विध धर्मसंघ ने संघगान किया। आचार्य के मंगलपाठ से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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