86वीं पुण्यतिथि पर याद की गईं उमराव जान, कब्र पर हुई गुलपोशी
शाने अवध उमराव जान को दुनिया के तवायफ के रूप में जानती है। बहुत कम ही लोग उनके द्वारा आजादी की लड़ाई में दिए गए योगदान के बारे में जानते हैं। जिंदगी की तमा दुश्वारियां के बाद उमराव का की नगरी काशी में साल 1937 में हुआ। 26 दिसंबर को उनकी 86वीं पुण्यतिथि पर उनके मकबरे पर गुलपोशी कर लोगों ने फातिहा पढ़ा।
86वीं पुण्यतिथि पर याद की गईं उमराव जान, कब्र पर हुई गुलपोशी
वाराणसी। अवध की शान उमराव जान की 86वीं पुण्यतिथि मंगलवार को वाराणसी के सिगरा स्थित फातमान के पास स्थित उनके मकबरे पर मनाई गई। उमराव जान की इस कब्र को साल 2005 में डर्बीशायर क्लब के अध्यक्ष शकील अहमद ने खोज निकाला था। उत्तर प्रदेश सरकार ने यहां भव्य मकबरा बनवाया है। ऐसे में उनकी 86वीं पुण्यतिथि पर डर्बीशायर क्लब के अध्यक्ष और सदस्यों ने गुलपोशी कर फातिहा पढ़ा और मोमबत्तियां जलाई गई।
फैजाबाद में हुआ था जन्म इस संबंध में शकील अहमद ने बताया कि उमराव जान का जन्म फैजाबाद में हुआ था। बाद में वो लखनऊ चली गई और नवाबों की महफिलों की शान बन गईं। इसी बीच अंग्रेजों के साथ लड़ रहे भारत की इस बेटी ने भी अपने स्तर पर इस लड़ाई में जान डाली। शकील ने कहा की बहुत कम ही लोग जानते है कि उमराव ने आजादी की लड़ाई भी लड़ी और लोगों को आजादी के लिए जागरूक किया।
लोग समझते काल्पनिक शकील ने कहा की उमराव जान के किरदार को लोग काल्पनिक ही मानते यदि मुजफ्फर अली ने फिल्म उमराव जान न बनाया होती और रेखा ने उमराव के रोल में जान न फूंकी होती और खय्याम साहब के संगीत ने उसे ज़िंदा करके लोगों के जेहन में न छोड़ा होता तो। शकील कहते हैं की रेखा ने उमराव को फिर जिन्दा किया पर उमराव अपने आखरी दिनों में गुमनामी में चली गईं और वाराणसी आकर दालमंडी में रहीं और मूत के बाद उनके करीबियों ने उन्हें यहां दफन कर दिया।