scriptनए युग में धीरे-धीरे खत्म हो रहा है किताबों का सदियों पुराना दौर | The centuries old age of books is slowly ending in the new era | Patrika News
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नए युग में धीरे-धीरे खत्म हो रहा है किताबों का सदियों पुराना दौर

पहले डाकिया के हाथों से भेजी गई चिट्टियां और बदले में जवाब के इंतजार में लोग कई-कई दिन और महीने खुशी से काट लिया करते थे।

Aug 17, 2023 / 03:47 pm

Narendra Singh Solanki

नए युग में धीरे-धीरे खत्म हो रहा है किताबों का सदियों पुराना दौर

नए युग में धीरे-धीरे खत्म हो रहा है किताबों का सदियों पुराना दौर

पहले डाकिया के हाथों से भेजी गई चिट्टियां और बदले में जवाब के इंतजार में लोग कई-कई दिन और महीने खुशी से काट लिया करते थे। इस इंतजार में भी एक सुकून था। आज के दौर में उंगलियों से चंद सैकंडों में मैसेज टाइप करके एक क्लिक पर भेज दिया जाता है, जो उसे अगले ही सैकण्ड मिल भी जाता है।यह आधुनिक दुनिया की सुविधा का एकमात्र उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनकी बात की जाए तो किताब के पन्नेखत्म हो जाएंगे, लेकिन उदाहरण नहीं। चिट्टियों के समान आज के समय में हमारी सबसे अच्छी दोस्त किताबें भी किसी संदूक में पड़े-पड़े धूल खाने को बेबस हो गई हैं। वहीं, एक क्लिक पर समस्या के समाधान खोजने की परंपरा दौड़ पड़ी है। अब कहां लोग सवालों का पुलिंदा लेकर किताबों के पास आते हैं।

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किताबों का मोल शब्दों में बयां नहीं

पुराने समय में किताब का जो मोल था, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। न हाथ में मोबाइल थे और न ही सोशल मीडिया की दिखावे वाली दुनिया। अपने जीवन का न सिर्फ खाली, बल्कि सबसे खास समय किताबें पढ़कर बिता करता था। जिस क्षेत्र में चाहिए, जिस बारे में चाहिए, बात जीवन की उलझनों की हो, या प्यार की मीठी यादों को ताजा करने की, किताबें बवंडर की तरह मन में उठ रहे सवालों के शांति से सुकून भरे जवाब अपने साथ लिए आती थी। आज के समय में सवालों के जवाब इंटरनेट पर मिल जाया करते हैं, फिर इस बात से भी क्या ही लेना-देना कि वो सच हैं भी या नहीं।

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सच का आइना है किताबें

सच का आइना सही मायने में किताबें हैं। सभी को मालूम है कि इंटरनेट पर सच के साथ ही झूठ भी बिखरे पड़े हैं, फिर भी किताबें पिछड़ गई हैं। मन को शांत कर देने वाली और सुकून भर देने वाली किताबों को रौंद गया है सोशल मीडिया और इंटरनेट से। अमेरिकी उपन्यासकार विलियम स्टायरान ने कभी कहा था कि एक अच्छी किताब के कुछ पन्ने आपको बिना पड़े ही छोड़ देना चाहिए, ताकि जब आप दुखी हों, तो उसे पढ़कर आपको सुकुन मिल सके। दूर होती किताबें या यूं कह ले कि किताबों से परहेज उस युग का अंत करने जा रहा हैं, जहां हर मुश्किल सवाल का जवाब ढूंढने लोग किताबों के पास आया करते थे।

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किताब पढ़ने से तनाव छूमंतर

राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम का कहना है कि भले आज की पीढ़ी इस बात को माने या न माने, लेकिन शोध कहता है कि तनाव के समय सबसे प्रिय किताब पढ़ने से तनाव छूमंतर हो जाता है, क्योंकि किताबें व्यक्ति के तनाव के हार्मोन यानी कार्टिसोल के स्तर को कम करती हैं। नींद की परेशानी भी किताबों से दूर ही भागती है। रात में देर तक टीवी देखने, मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी आंखें गढ़ाए रखना और कम्प्यूटर पर काम करने से आपकी नींद उड़ सकती है, लेकिन रात में सोने से पहले किताब पढ़ने की आदत आपको अच्छी नींद की सौगात दे सकती है। किताबों में बिन कुछ कहे सब कुछ कहने का हुनर है। इस हुनर से जिस दिन आज के युवाओं से मुलाकात हो गई, सच मानो, इंटरनेट की चकाचौंध को छोडक़र किताबों की दुनिया वाला संन्यास लेना वे अधिक पसंद करेंगे।

https://youtu.be/qkctkyPiiXE

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