scriptकिताब की शक्ल में चर्चित हो रहे हैं इस पत्रकार के नोट्स | Book by Arvind Das Bekhudi Me Khoya Shahar | Patrika News

किताब की शक्ल में चर्चित हो रहे हैं इस पत्रकार के नोट्स

locationनई दिल्लीPublished: Dec 20, 2018 05:17:43 pm

Submitted by:

Dheeraj Kanojia

देश-दुनिया घूमने वाले अरविंद दास ने अपने नोट्स को किताब की शक्ल दी है। नाम है ‘बेख़ुदी में खोया शहर : एक पत्रकार के नोट्स’। बुधवार शाम इसका लोकार्पण हुआ

book launch

किताब की शक्ल में चर्चित हो रहे हैं इस पत्रकार के नोट्स

भारतीय टीवी के मशहूर पत्रकार और इंटरव्यूअर करण थापर अरविंद दास की इस किताब के विमोचन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। वरिष्ठ आलोचक वीर भारत तलवार और राजस्थान पत्रिका के सलाहकार संपादक ओम थानवी ने इस मौके पर आयोजित चर्चा में शामिल हुए। जबकि कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध लेखक प्रभात रंजन ने किया।

सबाल्टर्न के प्रति संवेदनशील दृष्टि

प्रोफेसर वीर भारत तलवार ने किताब में लेखक की निम्नवर्गीय चेतना को खास तौर पर रेखांकित किया। उन्होंने कहा- ‘मीडिया के डॉमिनेंट डिसकोर्स में जिसकी बात नहीं की जाती है इस किताब में उस पर बात की गई है।’ उन्होंने लेखक की दलितों-पिछड़ों, सबाल्टर्न के प्रति संवेदनशील दृष्टि की बात की। किताब में मिथिला पेंटिंग, बीबीसी और पीर मुहम्मद मुनिस के ऊपर लेखों का जिक्र किया। साथ ही इन लेखों की तुलना शेखर जोशी की कहानियों से की। उन्होंने कहा कि इस किताब में पत्रकारिता और साहित्य का अदभुत संगम है। जेएनयू में प्रोफेसर रहे वीर भारत तलवार ने किताब में शामिल एक लेख का जिक्र करते हुए कहा कि जेएनयू पर इतना मुक्कमल लेख उन्होंने कहीं और नहीं पढ़ा।

बारीक दृष्टि और सहज भाषा

इस मौके पर किताब की चर्चा करते हुए ओम थानवी ने कहा कि ‘अरविंद शोधार्थी है पर शोध का बोझ इनके लेखन में नहीं है। यह किताब साहित्य के करीब है।’ उन्होंने लेखक की संवेदनशीलता, चीजों को देखने की बारीक दृष्टि और सहज भाषा का उल्लेख किया। उन्होंने किताब में मौजूद यात्रावृतांत का उल्लेख करते हुए कहा कि रघुवीर सहाय ने लिखा है- ‘बोले तो बहुत पर कहा क्या’। उन्होंने कहा कि अरविंद की यात्रा में ज्ञान नहीं है, अनुभव है, स्पंदन हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि कई लेखों में विस्तार की गुजांइश थी, पर चूंकि अखबार के लिखे गए लेख हैं तो एक सीमा हमेशा रहती है। पर उन्होंने अगले संस्करण में लेखक से अपने नोट्स में और भी कुछ जोड़ने की गुजारिश की। वर्तमान मोदी शासन के दौर में ‘गोदी मीडिया’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लेखक इस किताब में पत्रकारिता पर भीतर से ऊंगुली उठाते हैं।

कार्यक्रम का संलाचन करते हुए प्रभात रंजन ने किताब में संकलित लेखों में साहित्यकता पर जोर दिया। साथ ही निबंधों में मौजूद लालित्य को रेखांकित किया, साथ ही किताब का एक अंश ‘सावन का संगीत’ पढ़ कर सुनाया। उन्होंने किताब के एक खंड ‘स्मृतियों का कोलाज’ का खास तौर पर जिक्र किया।

किताब के लेखक अरविंद दास ने कार्यक्रम के शुरुआत में पेरिस यात्रा और मैथिली भाषा पर किताब में शामिल लेखों का पाठ किया। किताब में पाँच खंड हैं जो लेखक की देश-विदेश की यात्राओं, मीडिया, कला-संस्कृति , रिपार्ताज और संस्मरण को समेटे हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो