एनजीओ वर्कर्स के रोल में…
एनजीओ वर्कर्स के बारे में बात करते हुए डायना कहती हैं, ‘एनजीओ वर्कर्स में काफी डेडिकेशन और पैशन होता है, और यही मुझे अपनी परफॉर्मेंस में लाना था। लोगों की यह धारणा गलत है कि यह वालंटरी वर्क है, इसलिए इसमें किसी तरह की क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती। जबकि गायत्री जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को समाजविज्ञान, मनोविज्ञान और आपराधिक व्यवहार की अच्छी जानकारी होती है।’
स्क्रिप्ट पढ़ते ही हां कह दिया
डायना से पहले यह रोल कृति सैनन को ऑफर किया गया था, जो रोल की तैयारी करने के बाद फिल्म से निकल गई थीं। फिर प्रोड्यूसर निखिल आडवाणी ने डायना को कॉल किया, जिन्होंने डायरेक्टर रणजीत तिवारी के साथ स्क्रिप्ट पढऩे के बाद तुरंत हां कर दी। वे कहती हैं, ‘मैं इस बारे में नहीं सोचती कि मुझसे पहले यह रोल किसे ऑफर किया गया था। मैं आभारी हूं कि मुझे वह रोल मिला, जिसे मैंने करना ठीक समझा। यह सबके लिए ठीक रहा।’
कॉकटेल के बाद लंबा ब्रेक...
‘कॉकटेल’ (२०१२) के बाद डायना का लंबा ब्रेक रहा। वे कहती हैं, ‘जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं ब्रेक पर थी क्या, तो मुझे बड़ा अजीब लगता है। कॉकटेल के बाद ‘हैपी भाग जाएगी’ की। फिल्म की तैयारी में भी वक्त लगता है। और यह भी कि मैं बार-बार ‘मीरा’ नहीं बनना चाहती। अलग-अलग नाम से, पर एक ही फिल्म के सेट-अप में। मैं नंबर्स का पीछा नहीं करती, मेरी चॉइस क्वालिटी की रहती है। मैं स्टफ साइन नहीं करना चाहती थी, यह मेरा स्टाइल नहीं है।’
सेंट्रल…में फरहान का साथ
उनकी अपकमिंग मूवी ‘लखनऊ सेंट्रल’ में वह फरहान अख्तर के अपोजिट हैं, जो बेहतरीन एक्टर और डायरेक्टर हैं। उनके साथ अपने अनुभवों के बारे में डायना कहती हैं, ‘शूट के दौरान मैंने महसूस किया कि फरहान कितने रियल और सटल हैं। उन्होंने अपना कैरेक्टर बहुत ही संयत होकर बारीकी से किया है। उन्हें देखना दिलचस्प लर्निंग एक्सपीरियंस रहा, और रोनित रॉय, गिप्पी ग्रेवाल, इनामुलहक और दीपक डोब्रियाल जैसे अन्य काबिल एक्टर्स का भी अनुभव अच्छा रहा, जो एक दूसरे से अपना अनुभव शेयर कर रहे थे।’