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जानें प्रेग्नेंसी से जुड़े भ्रम और उनकी सच्चाई

locationजयपुरPublished: Jul 14, 2019 07:02:05 pm

गर्भावस्था एक ऐसी अवस्था है जब महिला को खास देखभाल की जरूरत होती है

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जानें प्रेग्नेंसी से जुड़े भ्रम और उनकी सच्चाई

गर्भावस्था एक ऐसी अवस्था है जब महिला को खास देखभाल की जरूरत होती है। लेकिन आमतौर पर समाज में इससे जुड़े भ्रम सुनने में आते हैं जिनकी सच्चाई जानना जरूरी है। जानें कुछ प्रमुख भ्रम और उनकी सच्चाई के बारे में ताकि मां और बच्चा दोनों सेहतमंद बने रहें :-
भ्रम: दोगुनी डाइट लेने की बात!
तथ्य: आमतौर पर प्रेग्नेंसी में महिला को सामान्य से 350 गुना कैलोरी चाहिए होती है। अक्सर सुनने में आता है कि प्रेग्नेंसी में दोगुनी डाइट लें। यह भ्रम है। जरूरी नहीं कि इस दौरान डाइट बढ़े बल्कि भोजन पौष्टिक ज्यादा होना चाहिए।
भ्रम: देसी घी से लेबर पेन कम!
तथ्य: यह धारणा गलत है कि देसी घी खाने से प्रसव में आसानी होने के साथ दर्द कम होगा। देसी घी सिर्फ शरीर में सेचुरेटेड फैट का स्तर अधिक कर वजन बढ़ाता है।स्त्री रोग विशेषज्ञ भोजन में सामान्य मात्रा में देसी घी खाने की सलाह देती हैं। ताकि पोषण मिलने के साथ संक्रमण और पेट संबंधी समस्याओं से बचाव हो सके।
भ्रम: जुड़वां हों तो अधिक खाएं!
तथ्य: माना जाता है कि गर्भ में बच्चे जुड़वां हैं तो सामान्य से अधिक भोजन करना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। इस स्थिति में महिला को बार-बार घबराहट होती है।इसलिए विटामिन, आयरन से भरपूर डाइट लेने की सलाह देते हैं।
भ्रम: वर्कआउट से नुकसान!
तथ्य: हैवी वर्कआउट से मांसपेशियों और अंगों पर दबाव पड़ने से गर्भस्थ शिशु पर बुरा असर पड़ सकता है। विशेषज्ञ खासतौर पर पांचवे माह के बाद हैवी वर्कआउट करने के बजाय ब्रिस्क वॉक, प्राणायाम, योग, मेडिटेशन जैसी हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं। ताकि शारीरिक सक्रियता बनी रहे।
भ्रम: केसर का शिशु पर असर!
तथ्य: शिशु की त्वचा की रंगत सिर्फ माता-पिता के जीन्स पर निर्भर करती है। भारतीय परम्पराओं में गर्भवती को केसर से भरी डिब्बी उपहार में देते हैं। असल में ऐसा करना बच्चे के गोरे होने से कोई संबंध नहीं रखता बजाए उसे पोषण मिलने के।
भ्रम: सोनोग्राफी से शिशु होता अंधा
तथ्य: सुनने में आता है कि सोनोग्राफी से शिशु अंधा हो सकता है। ऐसा नहीं है, प्रेग्नेंसी के दौरान 3 बार सोनोग्राफी रुटीन चेकअप के तौर पर करते हैं। गर्भ में शिशु की स्थिति में बदलाव, वजन कम होना या गले में नाल फंसने पर तीन बार से ज्यादा भी कई बार इसे करते हैं। जिससे बच्चे पर कोई बुरा असर नहीं होता।
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