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Congenital hypothyroidism: थायरॉयड हार्मोन की कमी से पड़ता है दिमाग पर असर, जानें इसके बारे में

locationजयपुरPublished: Jul 21, 2019 01:56:52 pm

Congenital hypothyroidism: जन्म के 3-4 दिनों के अंदर नवजात की जांच से इस रोग की पहचान व इलाज संभव है।
 

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Congenital hypothyroidism: जन्म के 3-4 दिनों के अंदर नवजात की जांच से इस रोग की पहचान व इलाज संभव है।

Congenital hypothyroidism: जन्म से बच्चे में थायरॉयड हार्मोन की कमी या इसके न बनने की परेशानी भी देखने में आती है। इसे कॉन्जेनिटल हायपो-थायरॉयडिज्म (सीएच) कहते हैं जो शिशु के मानसिक विकास में बड़ी बाधा बन सकती है। इसके लक्षण जन्म के 3-4 माह बाद दिखते हैं तब तक दिमाग को काफी क्षति पहुंच चुकी होती है। जन्म के बाद 3-4 दिनों में नवजात की गहन जांच से इसकी समय पर पहचान-इलाज संभव है।

एड़ी के खून से जांच-
शिशु की एड़ी से खून की कुछ बूंदें लेकर स्क्रीनिंग करते हैं। किसी तरह की कमी मिलने पर विशेषज्ञ अन्य जांचें कराकर रोग की पुष्टि कर इलाज शुरू करते हैं। स्क्रीनिंग से आनुवांशिक, मेटाबॉलिक- रक्त संबंधी रोगों का पता लगाते हैं।

थायरॉयड की कमी तो-
शिशु की नस से ब्लड सैंपल लेकर टी-4 व टीएसएच जांच कराकर रोग की स्थिति स्पष्ट करते हैं। रिपोर्ट उसी दिन मिल जाती है। थायरॉयड स्कैन भी करा सकते हैं।

इनको अधिक खतरा-
ऐसे बच्चे जिनके परिवार के किसी सदस्य को कॉन्जेनिटल हायपोथायरॉयडिज्म रहा हो।
जिन बच्चों में जन्मजात डाउन सिंड्रोम (एक तरह की मानसिक विकृति) या हृदय रोग हो।
यदि मां प्रेग्नेंसी के समय एंटीथायरॉयड दवा खा रही हो।
प्रीमेच्योर बच्चों में भी सीएच का खतरा अधिक रहता है।

वजन के मुताबिक तय होती दवा की डोज-
बच्चे में थायरॉयड की कमी होने पर 3 वर्ष तक दवा चलती है क्योंकि शिशु का मानसिक विकास तीन वर्षों तक तेजी से होता है। जरूरत पड़ने पर इलाज की अवधि बढ़ाई जा सकती है। थायरॉयड ग्रंथि न होने पर दवा ताउम्र खानी पड़ती है जिसकी डोज शिशु के वजन के मुताबिक तय होती है। रोग की स्थिति जानने के लिए 2-3 माह में ब्लड टैस्ट भी कराते हैं।

जल्द इलाज, बेहतर परिणाम-
इलाज जितनी जल्दी शुरू होगा, मानसिक क्षति उतनी कम होगी व परिणाम बेहतर मिलेंगे। आमतौर पर डॉक्टर 15 दिनों के अंदर इलाज करने की सलाह देते हैं क्योंकि स्क्रीनिंग व अन्य जांचों में 10-12 दिनों का समय लग जाता है।

कहां होती है स्क्रीनिंग-
भारत में फिलहाल इसकी जांच दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में होती है। इसके लिए जहां बच्चे का जन्म हुआ है उसी अस्पताल में ब्लड सैंपल दिया जा सकता है। अस्पताल नमूने को संबंधित सेंटर पर भेज देते हैं। करीब सात दिनों के अंदर इसकी रिपोर्ट आ जाती है।

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