दौरे के संभावित कारण-
मिर्गी के दौरे आने के कई संभावित कारण हैं। इनमें सबसे अहम कारण नींद की कमी है। इसके मरीजों को रोजाना कम से कम 7-8 घंटे की अच्छी व पर्याप्त नींद लेनी चाहिए। अगर थकावट महसूस हो तो ज्यादा नींद ले सकते हैं। साथ ही हार्मोन में गड़बड़ी, जलती-बुझती तेज रोशनी, नशीली दवाएं लेना, शराब पीना या दूसरे प्रकार का नशा करना, मिर्गी रोगी द्वारा दवाएं अचानक बंद कर देना, कुछ मरीजों में भावनात्मक तनाव और छोटे बच्चों में बुखार भी कारण हो सकते हैं।
मिर्गी आने पर…
रोगी को जूता, प्याज आदि न सुंघाएं। मुंह पर पानी ना डालें, सांस लेने में परेशानी होती है। झाड़-फूंक न करें। मुंह में कपड़ा न ठूसें, समस्या हो सकती है। रोगी को पकड़ने से उसकी मसल्स को नुकसान हो सकता है। परिवार, दोस्तों को बताएं कि दौरा आने पर क्या करें। एनर्जी के लिए संतुलित व पौष्टिक भोजन करें, तनाव न लें और पर्याप्त नींद लें।
कारण –
सिर में चोट लगना, दिमाग में मिर्गी के कीड़े (सिस्टीसरकोसिस) का होना, ब्रेन अटैक (लकवा) आना,दिमाग में टी.बी. की बीमारी या कैंसर होना, ब्रेन ट्यूमर, ज्यादा नशा करना, दिमाग में ऑक्सीजन की कमी, कई बार पाचन संबधी परेशानी और फूड प्वॉइजनिंग भी इसके कारण हो सकते हैं।
जांचें-
इसके लिए कई जांचें कराई जाती हैं लेकिन मुख्य जांचों में एमआरआई, सीटी स्कैन व ईईजी शामिल हैं। साथ ही ब्लड टैस्ट भी कराया जाता है।
क्या हैं लक्षण –
मिर्गी के मरीजों के शरीर में झटके आना तथा शरीर का अकड़ जाना, हाथ-पैरों में अकड़न, मुंह से झाग आना, जीभ का बाहर निकलना, कई बार मरीज द्वारा खुद ही अपनी जीभ और होंठ को काटना प्रमुख हैं। आंखों की पुतलियों के फिरने के अलावा शरीर पर से नियंत्रण लगभग खत्म होने से कई बार मरीज कपड़ों में ही यूरिन कर देता है।
बच्चों में भी मिर्गी –
छोटे यानी स्कूल जाने वाले बच्चों में भी मिर्गी की बीमारी होती है। इसमें बच्चे थोड़ी देर के लिए गुमसुम या कहीं खोए-खोए से नजर आते हैं। लेकिन कुछ समय बाद वे सामान्य भी हो जाते हैं। इसी तरह महिलाओं में इसके शुरुआती लक्षण अलग ही दिखते हैं। अगर किसी महिला को सुबह के समय हाथ से अक्सर बर्तन छूटकर गिर जाने की समस्या है तो यह भी मिर्गी का लक्षण हो सकता है। इसकी जांच कराना जरूरी है।
ऐसे करें बचाव –
मुख्य बात तनाव से दूरी बनाना है। गंदे पानी में उगी सब्जियों और फलों में मिर्गी की वजह बनने वाले कीड़े पनपते हैं, इनसे परहेज करें। साफ-सफाई का ध्यान रखें। किसी भी प्रकार का नशा न करें। दुपहिया चालक हेलमेट व चौपहिया चालक सीट बेल्ट लगाएं। प्रसव हमेशा प्रशिक्षित डॉक्टर से ही करवाएं ताकि शिशु को जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी ना हो।
इलाज –
अधिकतर मरीजों का इलाज दवाओं से होता है। कुछ में सर्जरी भी करते हैं। रोग का इलाज कम से कम ढाई या तीन साल तक चलता है। लेकिन ध्यान रखें कि इस दौरान एक भी डोज छूटने से मिर्गी का दौरा दोबारा आने की दिक्कत हो सकती है। इसलिए दवा लेना बंद न करें। पहले की तुलना में नई दवाएं सुरक्षित होने के साथ कम दुष्प्रभाव वाली भी होती हैं।