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महिलाओं में प्रसव बाद बढ़ सकता है पोस्टपार्टम एनीमिया का खतरा

locationजयपुरPublished: Apr 24, 2018 12:18:16 am

महिलाओं के शरीर में अहम बदलाव किशोरावस्था से लेकर हर अवस्था में होते हैं।

महिलाओं में प्रसव बाद बढ़ सकता है पोस्टपार्टम एनीमिया का खतरा

महिलाओं के शरीर में अहम बदलाव किशोरावस्था से लेकर हर अवस्था में होते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा परिवर्तन जो उनके शरीर में देखे जाते हैं वह अवस्था गर्भावस्था कहलाती है। इसी से जुड़ी एक समस्या है पोस्टपार्टम एनीमिया। यह खासतौर पर डिलीवरी के बाद सामने आती है।

यह है समस्या
प्रेग्नेंसी के दौरान जो कुछ महिला खाती पीती है, उसका आधा अंश बच्चे के शरीर तक पहुंचता है। खासतौर पर जरूरी पोषक तत्त्व जैसे कैल्शियम, आयरन, फॉलिक एसिड आदि। पोस्टपार्टम एनीमिया की स्थिति में प्रसव के एक से डेढ़ माह के बाद यदि महिला के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा १२ ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम पाई जाती है। आमतौर पर प्रसव के बाद भी महिला के शरीर में खून की मात्रा सामान्य रहती है और स्तनपान कराने के दौरान पीरियड्स भी नहीं होते हैं। इसलिए इस दौरान शरीर में खून की मात्रा संतुलित रहती है। जानते हैं खास कारणों को जिस वजह से शरीर में खून की कमी हो सकती है।

ये हो सकते हैं लक्षण
आमतौर पर शुरुआत में इस रोग के लक्षणों की पहचान नहीं हो पाती। लेकिन धीरे-धीरे जिस तरह गर्भावस्था के दिन बढ़ते जाते हैं महिला को कई प्रकार के लक्षण महसूस होने लगते हैं। इस बीमारी में कमजोरी आना, सिर भारी होना, चक्कर आना, थोड़ी देर चलने या खड़े रहने पर भी काफी ज्यादा थकान महसूस करना और सांस फूलना, धडक़न बढ़ जाना आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा महिला को स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी महसूस होता है। किसी भी काम में मन नहीं लगता। कई बार दूध न उतरने की भी शिकायत करती दिखती हैं।

ऐसे होता इलाज
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ महिला को आयरन से युक्त चीजें खाने की सलाह देती है। इसके लिए भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, साबुत अनाज आदि खाने के लिए कहती हैं ताकि प्राकृतिक रूप से आयरन की कमी को पूरा किया जा सके। इससे शरीर में दुष्प्रभाव का खतरा भी काफी हद तक कम हो जाता है। प्रसव बाद बच्चे को स्तनपान नियमित रूप से करवाएं। आयरन की गोलियां या अन्य प्रकार के सप्लीमेंट्स लेने से साइड इफैक्ट्स होने का डर है तो विशेषज्ञ आयरन के इंजेक्शन भी निश्चित समय अंतराल के बीच में लगाते हैं। हालांकि इससे कई महिलाओं को पेट में कीड़े होने की शिकायत भी हो सकती है जिसके लिए विशेष प्रकार की दवा दी जाती है।

ये हैं प्रमुख कारण
गर्भावस्था के दौरान चलने वाली आयरन और फॉलिक एसिड की दवाओं को नियमित न लेने से दिक्कत हो सकती है।
गर्भधारण से पहले ही यदि महिला को एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी है तो यह रोग हो सकता है।
प्रसव के बाद यदि अधिक ब्लीडिंग हो तो भी रक्त की मात्रा शरीर में कम हो जाती है। बच्चों के बीच अंतर न रखने पर भी यह समस्या हो सकती है।
प्रेग्नेंसी के दौरान आयरन से युक्त फल और सब्जियों को न खाने से भी इस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है।
गर्भवती महिला का वजन यदि अधिक हो तो भी खून की कमी हो सकती है।

होने वाली समस्या
गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद यदि महिला को पोस्टपार्टम एनीमिया यानी शरीर में कमी हो तो इससे कई सेहत संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसमें प्रमुख रूप से शामिल हैं-
इस वजह से पोस्टनैटल डिप्रेशन की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
इससे यूरिनरी ट्रैक्ट इंफैक्शन होने की संभावना ३० प्रतिशत तक ज्यादा हो जाती है।
महिला लक्षण के रूप में अत्यधिक थकान और आलस महसूस करती है।
ज्यादातर महिलाओं में आयरन की कमी से होने वाली खून की कमी सबसे अहम परेशानी बनकर सामने आती है।
प्रसव के बाद पूर्ण रूप से ब्रेस्टमिल्क का न बनना। कुछ महिलाएं बच्चे को दूध तो पिला देती हैं लेकिन दूध की क्वालिटी इस समस्या से तुल्मात्मक रूप से कम होती है।

गर्भस्थ शिशु भी प्रभावित
पोस्टपार्टम एनीमिया केवल महिला के लिए ही नहीं बल्कि शिशु के लिए भी नुकसानदेह साबित होता है। इनमें ये प्रमुख रूप से शामिल है-
यदि मां में खून की कमी होगी तो शिशु प्रसव पूर्व होने के अलावा जन्म के समय कम वजन का पैदा हो सकता है।
मां में होने वाली खून की कमी की समस्या बच्चे में भी जन्मजात या आनुवांशिक रूप से सामने आ सकती है।
शिशु में खासतौर पर मानसिक समझ पर बुरा असर पड़ सकता है। उसमें न्यूरोकॉग्नेटिव डिसऑर्डर्स की संभावना सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा हो सकती है। साथ ही शिशु मनोरोगों सहित पैदा हो सकता है। इसके अलावा उसके मनोविकास में बाधा आ सकती है।
मां यदि पोस्टपार्टम एनीमिया की शिकार है तो जन्म के बाद शिशु का मानसिक विकास धीमा हो सकता है। हो सकता है उसके सोचने व समझने की क्षमता और याद्दाश्त काफी कमजोर या धीमी हो।

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