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डीईओ के खिलाफ पालकों का फूटा आक्रोश स्कूलों को दी है मनमानी करने की खुली छूट

locationबिलासपुरPublished: Apr 11, 2019 02:33:11 pm

Submitted by:

Amil Shrivas

निजी स्कूलों पर नहीं है नियंत्रण: स्कूलों में फीस अैार किताबों के नाम पर मची है लूट

Parents

डीईओ के खिलाफ पालकों का फूटा आक्रोश स्कूलों को दी है मनमानी करने की खुली छूट

बिलासपुर. निजी स्कूलों में फीस वृद्धि और कॉपी-किताब खरीदने के लिए दुकानें फिक्स करने के खिलाफ आंदोलित पालकों का गुस्सा जिला शिक्षा अधिकारी(डीईओ) आरएन हीराधर के खिलाफ फूट पड़ा। पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से कलेक्टर व डीईओ को ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन इन स्कूल संचालकों से पूछताछ तक नहीं की गयी। पालकों ने कहा कि डीईओ निजी स्कूल संचालकों का साथ दे रहे हैं। बुधवार को प्रेस क्लब में पालकों ने अपनी दर्द सबके सामने रखा। फीस वृद्धि को लेकर अभिभावक पिछले 15 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के नाम पर निजी स्कूलों द्वारा की जा रही मनमानी के विरोध में पालक आंदोलन करने के मूड में है।
स्कूल संचालकों द्वारा नए शिक्षा सत्र में 30 से 40 फीसदी शुल्क वृद्धि करने से पालक काफी नाराज हैं। अभिभावक इसकी शिकायत मुख्यमंत्री, विधायक, कलेक्टर व जिला शिक्षा अधिकारी से कर चुके हैं। जहां उन्हें आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। डीईओ ने पालकों की शिकायत पर सभी स्कूल संचालकों से फीस वृद्धि वापस लेने के लिए कहा था, लेकिन एक सप्ताह बाद भी स्थिति जस की तस है। स्कूल संचालक डीईओ के आदेश को दरकिनार करते हुए अपनी मनमानी कर रहे हैं। पालकों ने आरोप लगाया कि जिला शिक्षा अधिकारी आरएन हीराधर द्वारा कार्रवाई न करने पर उनके हौसले बुलंद है। जिसका खामियाजा पालकों और उनके बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। नए सत्र प्रारंभ होने के बाद भी बच्चे स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं।
इस तरह की जा रही है फीस की वसूली
शिक्षा का नए सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों में फीस अैार किताबों के नाम पर लूट शुरू हो गई है। अधिकांश स्कूलों में 30 से 40 प्रतिशत तक फीस बढ़ा दी गई है। इसके अलावा संस्थान द्वारा बच्चों से वार्षिक शुल्क के नाम पर लाखों रुपए ऐंठ रहे हैं। वहीं एनसीईआरटी के किताबों की जगह निजी प्रकाशन के किताबें व गाइड खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। प्राइमरी लेवल की एक कक्षा की किताबों का सेट 2500 से 5500 रुपए के बीच है। वहीं एनसीईआरटी की किताबेें कम दाम में मिल जाती हैं लेकिन निजी स्कूल एनसीईआरटी की पुस्तकें नहीं लगाते हैं।
अभिभावकों की प्रमुख मांगें
*बढ़ी हुई फीस तत्काल वापस ली जाए।
*वार्षिक शुल्क के नाम पर ली जा रही फीस बंद हो।
*एनसीईआरटी की किताबें ही निजी स्कूलों में लागू हों।
*सभी स्कूलो में प्रबंधन के साथ पालकों की समिति बनाई जाए।
*स्कूलों में 12 महीने की फीस वसूली पर रोक लगाई जाए।
*शिक्षा विभाग हर साल स्कूलों का आडिट करें जिसमें पालक संघ भी शामिल हो।
*ट्रांसपोर्ट के नाम पर भी ली जा रही अधिक राशि पर रोक लगे।
*वाहनों में बच्चों की सुरक्षा हेतु लोहे की जाली (नेट) लगाई जाए।
पत्रिका व्यू… बैकफुट पर क्यों हैं डीईओ
सीबीएसई व सीजी बोर्ड से संबद्ध निजी स्कूलों की मनमानी की लिखित व मौखिक शिकायत मिलने के बाद भी डीईओ चुप हैं। पहले वे शिकायत मिलने पर कार्रवाई की बात करते थे और अब पालकों ने डीईओ को दस्तावेजी सबूतों के साथ शिकायत की है तो वे बैकफुट पर हैं। सरकारी नियमों के तहत चलने वाले स्कूल अब सरकारी नियमों की अवहेलना कर रहे हैं। मनमाने तरीके से फीस बढ़ा रहे हैं और कमीशनखोरी के लिए फि क्स दुकान से कॉपी-किताबें खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। पालक आक्रोशित और आंदोलित हैं। डीईओ को चाहिए कि वे इन पालकों के दर्द को सुनें और विधि सम्मत कार्रवाई करें। अब तक कार्रवाई न होने से पालकों व आम लोगों में डीईओ की कार्यप्रणाली के प्रति संदेह पैदा हो रहा है।
पहली कक्षा के बच्चे से 25 हजार की वसूली
फीस की निगरानी करने के लिए सरकार के पास कोई सिस्टम नहीं है। निजी स्कूलों में अगर अभिभावक एक या दो बच्चों को पढ़ा रहे हैं तो उन्हें साल भर में एक से डेढ़ लाख रुपए तक खर्च करने पड़ेंगे। अगर शहर के कुछ स्कूलों की बात करें तो पहली कक्षा की सालभर की फीस करीब 25 हजार रुपए तक पहुंच जा रही हैं। इन सीबीएसई स्कूलों में हर साल एनूयअल चार्ज के नाम पर भी बच्चों से फीस ली जा रही है।
आवाज दबाने की कोशिश
इस पूरे मामले में प्रशासन अैार जिला शिक्षा विभाग की मिलीभगत साफ दिखाई दे रही है। किताब यूनिफार्म, ट्रांसपोर्ट, बिल्डिंग क्षतिपूर्ति,एडमिशन फीस आदि के नाम पर मनमानी ढंग से पालकों से वसूली की जा रही है। कई जगह प्रयोगशाला, खेल का मैदान मानकों के अनुरूप नहीं है, फिर भी अभिभावकों से फीस ली जा रही है। पालक इन स्कूलों की जांच की मांग कर रहे हैं। शहर के 10 से अधिक स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के पालकों ने कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी तक से शिकायत की है लेकिन कहीं भी सुनवाई नहीं हुई। हर जगह आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।
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