पति उसके साथ नहीं रहता इसलिए गुजारा भत्ता दिया जाए। निचली अदालत ने दिलीप को नोटिस जारी कर इस संबंध में अपना पक्ष रखने को कहा। अदालत को दिए जवाब में उसने बताया कि उक्त महिला दिवाती बाई से उसकी शादी नहीं हुई है और बच्ची उसकी नहीं है। इस पर न्यायिक दंडाधिकारी ने पत्नी को गुजारा भत्ता का हकदार नहीं मानते हुए पुत्री को भरण पोषण भत्ता दिए जाने का अधिकारी माना। ये मामला फिलहाल रिवीजन कोर्ट में लंबित है।
निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ कथित पिता दिलीप द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत हाईकोर्ट में क्रिमिनल याचिका दायर की गई। प्रकरण की सुनवाई के बाद एकलपीठ ने सुमित्रा चौधरी बनाम भीकत चक्रवर्ती मामले का हवाला देते हुए माना कि बिना विवाह के उत्पन्न शिशु भी भरण-पोषण भत्ता की हकदार है।