शहर के शिशु रोग अस्पतालों से मिली जानकारी के अनुसार हर साल ठंड के मौसम में बेल्स पाल्सी की शिकायत वाले दर्जनों बच्चे इलाज के लिए आते है। वहीं गर्भवती महिला, मधुमेह के मरीज, फेफड़े का संक्रमण वाले और इस तरह की बीमारी का पारिवारिक इतिहास रखने वाले व्यस्कों को भी इस बीमारी का खतरा बना रहता है।
बेल्स पाल्सी एक ऐसी स्थिति है जो चेहरे की मांसपेशियों में अस्थायी कमजोरी के कारण बनती है। यह तब हो सकता है जब चेहरे की मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली नस सूज जाती है, या दब जाती है। कमजोरी के कारण आधा चेहरा मुरझा जाता है। मुस्कान एकतरफा होती जाती है, और आंखें बंद करने में समस्या होती है। साथ ही साथ इंसान के कान से दिमागी नसें गुजरती हैं और ठंड और सर्द मौसम की वजह से उस सुरंग में सूजन आ जाती है, जिससे नस गुजरती है और इससे चेहरे का पैरालिसिस होने का खतरा होता है। यह बीमारी किसी भी आयु वर्ग के लोगों को हो सकती है पर सबसे अधिक खतरा बच्चों को होता है।
लक्षण और बचाव चेहरे में लटकन, आंखों की पुतली झपकने में तकलीफ, बोलने, खाने या पीने में कठिनाई, लार टपकना, जबड़े या कान में दर्द, कानों में सिन की आवाज सुनाई देना इसके प्रमुख लक्षण हैं। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों को या ऐसे व्यस्क जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं उनके कान को पूरी तरह से ढंका जाए, ताकि उनके कान में ठंडी हवा न लगे।
विंटर डायरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे डॉक्टरों के मुताबिक विंटर डायरिया सर्दी के मौसम में रोटावायरस इंफेक्शन से होता है। इस तीव्र डायरिया में एंटीबायोटिक दवाओं का कोई असर नहीं होता। डायरिया में उल्टियां और लूज मोशन होने से शरीर का पानी और नमक निकल जाता है। ऐसे में बच्चे को ओआरएस का घोल बनाकर दें।
नसों के दबने से होती है तकलीफ नसों के दब जाने की वजह से यह तकलीफ होती है, समय पर इलाज होने से इसे ठीक किया जा सकता है। कुछ मामलों में यह धीरे धीरे उम्र के साथ ठीक होता है। इसका इलाज हम स्टेरॉयड और एंटी फंगल दवाओं से करते हैं। – डॉ श्रीकांत गिरी , शिशु रोग विशेषज्ञ , शिशु भवन