खरसिया में लखीराम का नाम लेकिन प्रभाव नहीं
प्रदेश में भाजपा को स्थापित करने में जिन प्रमुख नेताओं का नाम लिया जाता है, उनमें लखीराम अग्रवाल भी शामिल हैं। लेकिन वे भी खरसिया में कुछ नहीं कर पाए। और तो और उन्होंने अपना कर्मक्षेत्र अंतत: बिलासपुर ही बना लिया और अपने पुत्र अमर अग्रवाल को भी जब चुनाव लड़ाने की बात आई तो उन्होंने बिलासपुर चुना। अमर अग्रवाल को यहां लाने का उनका फैसला सही भी रहा क्योंकि अमर यहां से लगातार चार बार विधायक हैं। इस बार भाजपा ने यहां पुरजोर कोशिश करते हुए पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया है। उधर यहां से लगातार जीतते रहे स्व. नंदकुमार पटेल के विधायक पुत्र इस बार भी मैदान में हैं और भाजपा को चुनौती दे रहे हैं।
सीतापुर में भी जूझती रही भाजपा
राम के नाम पर राजनीति के बाद भी सरगुजा की सीतापुर सीट पर भाजपा को कभी भी सफलता नहीं मिली। भाजपा ने प्रोफेसर गोपालराम भगत को इस बार प्रत्याशी घोषित किया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद हुई तीन चुनावों में यहां से कांग्रेस के अमरजीत भगत तीनों बार विधायक चुने गए। विधायक के नाते इस बार भी उनकी टिकट पक्की मानी जा रही है। इस बार भी भाजपा के लिए यह सीट छीनना चुनौती है।
कोटा में हमेशा ही कांग्रेस जीती
कोटा विधानसभा क्षेत्र से राजेंद्र प्रसाद शुक्ल लगातार विधायक रहे। इसके पहले भी यहां कांग्रेस ही जीतती रही। यहां तक कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधी लहर का भी यहां असर नहीं पड़ा और कांग्रेस से राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ही विधायक बने। उपचुनाव सहित तीन बार से यहां से कांग्रेस की विधायक रेणु जोगी हैं। इस बार यहां से टिकट फाइनल करने में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जद्दोजहद कर रही हैं। भाजपा ने इसी वजह से यहां अब तक नाम घोषित नहीं किया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस प्रत्याशी तय होने के बाद उस टक्कर का यहां पर प्रत्याशी घोषित किया जाएगा। सीएम यहां की एक सभा में जनता से कोटा सीट तोहफे में देने का आह्वान भी कर चुके हैं।