बीकानेर जिले एक ऐसा क्षेत्र है, जहां बारहमासी नदी नहीं है। यहां अनियमित तथा कम वर्षा से जनमानस के सामने पेयजल से संबंधित समस्या उत्पन्न होती है। आज भी यहां की ज्यादातर आबादी प्राचीन जल स्रोत कुआं, तालाब और बेरी के भरोसे अपनी व पशुधन की प्यास बुझा रहा है।
बीकानेर से 80 किलोमीटर दूर हदां गांव में ज्यादातर आबादी परम्परागत जल स्त्रोत से पेयजल की पूर्ति कर रही है। यहां तालाब का निर्माण हुआ, जो आज भी गांव की प्यास बुझा रहा है। हालांकि गत सरकार में हदां ग्राम पंचायत से तहसील मुख्यालय के रूप में स्थापित हुआ है। पूर्व में यह सात गांवों का एक पंचायत मुख्यालय था। कहा जाता है कि यहां पानी की किल्लत के कारण कई लोगों को परिवार सहित अन्य जगह पर जाकर बसना पड़ा था, लेकिन यहां बचे परिवारों ने गांव को बसाने और पानी की किल्लत को दूर करने के लिए पाताल तोड़ कुएं की खुदाई कर अपनी प्यास बुझाई।
हालांकि सरकार ने जल सरंक्षण के लिए कई योजनाएं बनाई, लेकिन सुदूर टीलों में बसे गांवों तक फलीभूत नहीं हो सकी। तब ग्रामीणों ने मिलकर जल सरंक्षण के लिए बेरी की खुदाई करना शुरू किया। आज भी मरुस्थल में बेरियां और तालाब ही पेयजल का मुख्य संसाधन है।
जल शक्ति मंत्रालय की ओर से ‘हर घर नल योजना शुरू होने के बावजूद यहां घरों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। कहने को तो यहां के सुदूर गांवों तक पाइप लाइनें बिछा दी गई, लेकिन उसमें पानी ही न हो तो क्या लाभ। यदि प्राचीन जल सरंक्षण के भण्डारणों पर सरकार की तरफ से ध्यान दिया जाए, तो ये जल भंडारण ढांचे जल की समस्या के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
रखरखाव के अभाव में अस्तित्व ही मिटने के कगार खिंदासर व बीठनोक में आज भी सैकड़ो वर्ष पुराने जल स्त्रोत के अपनी लाचारी पर रो रहे हैं। खिदासर के पूर्व सरपंच प्रभात सिंह भाटी ने बताया कि गांव के मध्य बना कुआं संवत 1250 में हिन्दूजी मूल राठौड़ ने बनवाया था तथा संवत 1600 में धनराज भाटी ने गांव को बसाकर पुनर्निर्माण करवाया, जो आज जर्जर हालत में है। इस तरह बीठनोक में भी रखरखाव के अभाव में कुएं का अस्तित्व ही मिटने के कगार पर है।