जब हमारे सांसद-विधायक मोठ और ग्वार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का मुद्दा उठाते हैं तो सरकार की ओर से यह तर्क दिया जाता है कि मोठ दलहनी फसल नहीं है और ग्वार व्यापारिक फसल है। खाद्य वस्तुओं की श्रेणी में नहीं आती। भारतीय किसान संघ के शंभूसिंह कहते हैं कि जब एमएसपी में मूंग शामिल है तो मोठ कैसे दलहनी फसल नहीं। बीकानेर में मोठ से भुजिया, पापड़ और बड़ी घरेलू उद्योग के रूप में विकसित है। भुजिया-पापड़ आदि क्या खाने के काम नहीं आते। जब कपास व्यापारिक फसल होने के बावजूद एमएसपी की सूची में शामिल है। फिर ग्वार को कैसे शामिल करने से रोका जा रहा है। ग्वार का उपयोग पशु आहार के रूप में होता है।
ग्वार की फसल जब बाजार में आती है तो ढाई से तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल के भाव भी नहीं मिलते। यही हाल मोठ का है। जो चार हजार रुपए प्रति क्विंटल के भाव के आस-पास रहती है। जबकि प्रति क्विंटल उत्पादन पर किसान की लागत ही ४६०० रुपए के करीब बैठती है। मोठ की समकक्ष मूंग का समर्थन मूल्य ७०५० रुपए प्रति क्विंटल है। हालांकि अब बुवाई के समय व्यापारी जब किसान से खरीदा मोठ बेचते हैं तो यह ५५०० रुपए तक पहुंच जाता है।
सरकार ग्वार व मोठ को न्यूनतम समर्थन मूल्य में शामिल क्यों नहीं कर रही है, यह समझ से परे है। पश्चिमी राजस्थान में सबसे अधिक मोठ व ग्वार की पैदावार होती है। यहां का किसान लंबे समय से इसकी मांग उठा रहा हैं। अभी विधानसभा में भी किसानों के प्रतिनिधि के रूप में पूरजोर ढंग से यह बात रखी है। राज्य सरकार जब केन्द्र सरकार को इसके लिए लिखित में प्रस्ताव भेजकर दबाव बनाएगी तभी बात आगे बढ़ेगी। पश्चिमी राजस्थान की यह बरानी फसलें है। यहां के गरीब किसान का चूल्हा भी इन दोनों फसलों से जलता है।
गिरधारी महिया, विधायक श्रीडूंगरगढ़।