सुनील ने बताया कि उन्होंने करीब 6 लाख रुपए का निवेश किया था। हालांकि ये सभी निवेश स्थाई सामान पर था। ऐसे में अब उन्हें और खर्चा करने की जरूरत नहीं रही। उन्होंने बताया कि पहली बार बीज खरीदकर लाने पड़े थे। अब वे भी नहीं लाने पड़ेंगे, बल्कि कई गुना बीज हर साल तैयार होते रहेंगे। अब सिर्फ एयरोपोनिक्क तकनीक के तैयार किए कक्ष में तापमान और आवश्यक नमी मेंटेन रखने और फूलों को खिलने के लिए जरूरी यूवी (अल्ट्रावॉयलेट) रोशनी पर खर्च होने वाली बिजली ही लगेगी। ऐसे में एक कमरे में सालाना करीब दस लाख रुपए तक आय होने लगी।
ऐसे आया आइडिया
स्नातकोत्तर तक शिक्षित और किसान के बेटे सुनील जाजड़ा
बीकानेर के चोपड़ाबाड़ी, गंगाशहर क्षेत्र में रहते हैं। अप्रेल 2020 में लॉकडाउन के दौरान उनका टायरों का शोरूम बंद हो गया, तब एक वीडियो देख केसर की खेती करने का विचार आया। साल 2021 में श्रीनगर गए। वहां केसर की खेती देखी और कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से बात की। फिर चार-पांच बार श्रीनगर जाकर किसानों से केसर की खेती के लिए तापमान और नमी की जानकारी जुटाई और बीकानेर आकर खेती शुरू की।
श्रीनगर जैसा क्लाइमेट तैयार किया
सुनील ने आईटी एक्सपर्ट सुनील पाणेचा की मदद से कमरे में श्रीनगर जैसा क्लाइमेट तैयार किया। चिंलिंग प्लांट, दीवारों पर थर्माकोल लगाकर कक्ष में लकड़ी के फ्रेम बनाए। इस तरह तीन साल की पूरी तैयारी के बाद अगस्त 2023 में कश्मीर से केसर के पौधे की बल्बनुमा जड़ यहां लाकर कक्ष में रखी। इसके बाद इनकी कपोल पर फूल खिलने के साथ केसर प्राप्त होनी शुरू हो गई। यह लहसुन और प्याज की तरह उग रहे हैं। सुनील अगस्त महीने में इनको निकालेंगे और एयरोपोनिक तकनीक से तैयार वातानुकूलित कक्ष में ट्रे में रख देंगे। जहां फूलों को खिलाने के लिए यूवी रोशनी के लिए एलईडी भी लगी है। कक्ष में सितम्बर और अक्टूबर में रहने के बाद नवम्बर में केसर के फूल खिल जाएंगे।