108 कलश जल से महाप्रभु का स्नान गौरतलब है कि गुरुवार को स्नान यात्रा के लिए महाप्रभु को स्नान वेदी पर विराजमान कराया गया और इसके लिए श्रीअंग को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेनापटा बांधा जाता है। महाप्रभु के श्रीअंग की सुरक्षा का उत्तरदायित्व दईतापति सेवकों पर रथयात्रा की समाप्ति तक होती है। प्रात:काल महाप्रभु के विग्रह को मंदिर परिसर में आनंद बाजार के पास बने स्नान मंडप पर लाया गया। वहां पर 108 कलश जल से महाप्रभु का स्नान कराया गया। स्नान पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर हजारों श्रद्धालु पुरी पहुंचे। स्नान पूर्णिमा के बाद 15 दिनों के लिए मंदिर में भगवान के दर्शन नहीं होते है। इसे महाप्रभु का अणसर काल कहा जाता है। महाप्रभु के स्नान पूर्णिमा के दिन देश दुनिया से भारी संख्या में भक्तगण पुरी पहुंचे। यहां के करीब 500 होटल व सैकड़ों लॉज, धर्मशालाओं के कमरें बुक कराए जा चुके हैं। लोग बुधवार से ही पुरी में हैं। स्नान मंडप में भगवान के दर्शन करना दुर्लभ योग माना जाता है।
कलयुग धाम है पुरी
सनातनी परंपरा के मुताबिक चार धामों को दिशा के अनुसार मान्यता दी गयी थी जिसमें उत्तर दिशा में बद्रीनाथ, दक्षिण दिशा में रामेश्वर नाथ, पश्चिम दिशा मे द्वारिका नाथ व पूर्व में जगन्नाथ धाम। इन्हें क्रमश: सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग व कलियुग के हिसाब से भी माना जाता है। कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ बदरीनाथ में स्नान करते हैं, द्वारका में श्रंगार और पुरी आकर 56 भोग अन्न ग्रहण करते हैं और रामेश्वरम में शयन। देव स्नान पूर्णिमा को महाप्रभु का जन्म दिन के रूप में भी माना जाता है।
सनातनी परंपरा के मुताबिक चार धामों को दिशा के अनुसार मान्यता दी गयी थी जिसमें उत्तर दिशा में बद्रीनाथ, दक्षिण दिशा में रामेश्वर नाथ, पश्चिम दिशा मे द्वारिका नाथ व पूर्व में जगन्नाथ धाम। इन्हें क्रमश: सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग व कलियुग के हिसाब से भी माना जाता है। कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ बदरीनाथ में स्नान करते हैं, द्वारका में श्रंगार और पुरी आकर 56 भोग अन्न ग्रहण करते हैं और रामेश्वरम में शयन। देव स्नान पूर्णिमा को महाप्रभु का जन्म दिन के रूप में भी माना जाता है।
स्नान के बाद आएगा बुखार बताते हैं कि देव स्नान पूर्णिमा अलौकिक नर लीला है जो एक मानव के अधिक स्नान करने से उसे बुखार आने और प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से वह स्वस्थ होते हैं। विश्व में कलियुग में मात्र एक ही भगवान हैं जो पूर्ण दारूब्रह्म के रूप में पूजित होते हैं।
महाप्रभु का गणतिवेश यह कथा भी प्रचलित है कि जगन्नाथ भगवान के अनन्य भक्त विनायक भट्ट की इच्छानुसार वह गणपति वेश में सुशोभित होते हैं। यह दर्शन पाने को देवलोक के समस्त देवता तक पुरी आते हैं। श्रीमंदिर प्रशासन परिपाटी के आधार पर देवस्नान के बाद जगन्नाथ जी सूंड़ से आसपास के फल आदि ग्रहण करते हैं। बुखार आने पर उन्हें उनके बीमार कक्ष यानी अणसरपींड पर विराजमान कराया जाता है जहां वह 15 दिन तक एकांतवास करते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस दौरान भगवान नारायण रूप धारण करके पुरी से कुछ दूर ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ के रूप में दर्शन देते हैं। इस दौरान भक्तगण अलारनाथ दर्शन को जाते हैं।