ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव में एनडीए प्रत्याशी के समर्थन में खुलकर आकर नवीन पटनायक ने भी संकेत दे दिया है कि ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे। बीजद ने भाजपा के साथ 2000 से 2004 साझा सरकार बनाई और इसके बाद भी 2004 से 2009 तक दूसरा कार्यकाल पूरा किया। बाद में 2008 में कंधमाल में विश्व हिंदू परिषद के प्रचारक लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद रिश्तों में खटास आने लगी। संघ परिवार के दखल के कारण दोस्ती प्यार की जगह दुश्मनी में बदलने लगी। 2009 के बाद बीजद चुनाव मैदान में बढ़त लेता रहा। पर 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद बीजद केंद्र के प्रति सॉफ्ट हुआ। हालांकि 21 में से 20 लोकसभा सीट और 147 में 117 विधानसभा सीट हासिल करके बीजद बड़ी पार्टी के रूप में उभरी पर केंद्र से रिश्ते मधुर बनाए रखने मे नवीन पटनायक ने कोई कमी नहीं छोड़ी। माइंस एंड मिनिरल डेवलेपमेंट रेग्युलेशन एक्ट में संशोधन करके यूपीए सरकार द्वारा आवंटित खनन ब्लाक निरस्त करने के फैसले में नवीन की पार्टी ने साथ दिया। इसमें ओडिशा के 37 ब्लाक के पट्टे निरस्त किए गए। विधेयकों को पास कराने में बीजद के राज्यसभा सदस्य सरकार की तरफ यदाकदा खड़े दिख जाते थे।
विमुद्रीकरण के मुद्दे पर मोदी सरकार का दिया साथ
विमुद्रीकरण के मुद्दे में बीजू जनता दल पूरी तरह से मोदी सरकार के साथ था। मोदी, अमित शाह और राजनाथ सिंह सभाओं में नवीन पटनायक की तारीफ करते नहीं थकते थे। सर्जिकल स्ट्राइक की नवीन ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। जीएसटी का खुला समर्थन करके पटनायक केंद्र सरकार की नजर में राष्ट्रीय स्तर पर सुधारवादी व्यक्तित्व के रूप में उभरे। राष्ट्रपति के निर्वाचन में नवीन पटनायक ने पार्टी में व्हिप जारी करके एनडीए कंडीडेट रामनाथ कोविंद को जिताने में महती भूमिका निभायी। हाल में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन से वाक आउट करके परोक्ष में केंद्र सरकार की मदद ही की।
पटनायक की भूमिका रही अहम
अब कील कांटे की लड़ाई में राज्यसभा उपसभापति के चुनाव में मोदी की एक कॉल पर एनडीसए कंडीडेट हरिवंश को समर्थन देकर जिताने में भी पटनायक की भूमिका अहम रही। इस पर स्टैंड लिया गया कि जनता दल (यू) और बीजू जनता दल को नवीन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की देन बताया। बोले, जद (यू) और बीजद का वैचारिक धरातल एक ही है। वह है जेपी मूवमेंट। सवाल यह है कि राष्ट्रपति के चुनाव में पीए संगमा को वोट देने की बीजद ने जद (यू) से अपील की थी पर जद (यू) उनकी अपील की अनदेखी की थी। ओडिशा के राजनीतिक हल्कों में लोग कहने लगे हैं कि 2019 के चुनाव में मोदी यदि मुश्किल में आते हैं तो बीजू जनता दल एनडीए के फोल्ड में आ भी सकता है। 2019 के लिए सारे चुनावी कील कांटे ठीक किए जा रहे हैं। राज्य में धुर विरोधी रहने के बाद भी साथी हो सकते हैं। ऐसे में बीजद को लेकर भाजपा का विरोधी सुर भी मद्धम पड़ सकता है।