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पश्चिम ओडिशा के किसान हुए लामबंद, इस बार इतनी बड़ी संख्या में दबाएंगे नोटा का बटन

locationभुवनेश्वरPublished: Apr 15, 2019 06:38:21 pm

Submitted by:

Prateek

इनकी संख्या 50 लाख के करीब होने का दावा किया गया है…

farmer file photo

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(संबलपुर,महेश शर्मा): पश्चिम ओडिशा के किसानों को मतदान वाले रोज नोटा (इनमें से कोई नहीं) वाला बटन दबाने के लिए लामबंद किया जा रहा है। इनकी संख्या 50 लाख के करीब होने का दावा किया गया है। किसान नेताओं का कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया। विभिन्न किसान संगठनों की प्रमुख संस्था पश्चिम ओडिशा कृषक संगठन समन्वय समिति (पीओकेएसएसएस) के संयोजक अशोक प्रधान इस आंदोलन को चला रहे हैं। उनका कहना है कि किसानों की समस्याओं पर कोई भी दल सीरियस नहीं दिखता। वर्ष 1991 से लेकर अब तक एक अनुमान के अनुसार चार लाख किसान देश भर में आत्महत्या कर चुके हैं। उनका कहना है कि स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का जो फार्मूला सुझाया गया है, उसी के आधार कैलकुलेशन करके एमएसपी तय किया जाना चाहिए। किसानों को नोटा के लिए किसानों को एक जुट करने को ब्लाक स्तर पर सभाएं और बैठके कर रहे अशोक प्रधान से हुई बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं।

 

पीओकेएसएसएस के संयोजक अशोक प्रधान
पीओकेएसएसएस संयोजक अशोक प्रधान IMAGE CREDIT:

50 लाख किसान हमारी ताकत हैं

इस संगठन से पश्चिम ओडिशा के 50 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। नेताओं और कार्यकर्ताओं को नोटा (इनमें से कोई नहीं) चुनने के लिए कहा गया है। बीजेपी, कांग्रेस या बीजेडी को चुनने के बजाय किसान नोटा का बटन दबाकर अपने गुस्से का इजहार करेंगे। उन्हें प्रचार और नोटा का उपयोग के लिए संगठित किया जा रहा है।

 

प्रमुख मांगें

पूरा कर्ज माफी, स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करना, राज्यस्तर पर कृषि उत्पादों पर बोनस, वाजिब एमएसपी दर जैसी बुनियादी समस्याओं की तरफ से ध्यान हटाया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन 2004 में गठित किया गया था तब कांग्रेस की सरकार थी। कमीशन ने 2006 को रिपोर्ट सौंपी थी। तब से अब तक क्या हुआ? इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार एक दो नहीं पूरे आठ साल तक सत्ता में रही।

 

नोटा के पक्ष में अभियान

पोलिटिकल पार्टियां प्रचार करने गांवों में पहुंचेंगी तो किसानों का संगठन नोटा का प्रचार अभियान चलाएगा। यह जारी रहेगा। इसे 2019 के चुनाव के लिए सीमित नहीं रखा गया है। यह शुरुआत है। अगले चुनाव में भी किसानों का यही स्टैंड रहेगा। मांगे जब तक न मानी जाएं। 2014 के चुनाव में भी किसानों को छला गया। प्राइस, प्रेस्टिज और पेंशन की मांग करने वाला किसान संगठन राजनेताओं के हाथों खेल रहा है। यह संगठन राजनीतिक नहीं है। लिंगराज चुनाव लड़े थे तो इस संगठन ने उन्हें समर्थन नहीं दिया था। पीओकेएसएसएस की नीयत साफ है। बीजेडी सरकार की कालिया, पीएम किसान सम्मान निधि योजना तो किसानों की मुख्य मांगों को दबाने के लिए हैं। किसानों की नाराजगी का कारण उनकी दुर्दशा है जिसपर किसी का ध्यान नहीं है।

 

किसान आय आयोग गठित हो

मांगों की एक सूची तैयार की गयी है। उदाहरण के तौर पर खेती को क्यों अनस्किल्ड माना जाता है क्यों, किसान आय आयोग गठित किया जाए जिसकी रिपोर्ट लागू की जाए और इसमें किसानों का भी प्रतिनिधित्व हो। किसान आत्महत्याओं को सरकार संज्ञान में ले। महानदी जल विवाद का हल जल्दी से जल्दी हो। ऐसे तमाम सवाल हैं। एक परचा भी जारी किया गया है।

 

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