विरोध में हैं साधू-संत और विपक्षी दल
मठ ढहाने का विरोध शंकराचार्य समेत बीजेडी छोड़ सभी दलों ने किया था। उधर श्रीजगन्नाथ संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए उप समिति का गठन किया गया है। पूरे शहर को ऐतिहासिक बनाने और मठों का पुनरुद्धार करने के लिए श्रीमंदिर प्रबंधन समिति ( Shri Mandir Management Commette ) ने पांच सूत्री प्रस्ताव भेजा है, जिसमें जगन्नाथ संस्कृति को बचाए रखने के सुझाव दिये गए हैं। जगन्नाथ महाप्रभु ( Jagganath Mahaprabhu ) के प्रथम सेवक, पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देव की अध्यक्षता में श्रीमन्दिर प्रबन्धन कमेटी की बैठक में मठ संस्कृति की बहाली पर विचार विमर्श किया गया। बैठक में पुरी के जिलाधिकारी बलवन्तसिंह, श्रीमन्दिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक किशन कुमार उपस्थित थे।
फिर उसी शक्ल में बनेगा मठ, लेकिन 75 मीटर दायरे से दूर
बैठक में टूटे मठों को एक बार फिर उसी शक्ल में 75 मीटर दायरे से दूर स्थापित करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए एक उपसमिति का भी गठन किया गया। उधर साधु संतों ने कहा कि बड़ा अखाड़ा मठ बिल्कुल सुरक्षित है, उसे टूटने नहीं दिया जाएगा। प्रशासन के प्रतिनिधि पुरी के उप जिलाधीश भवतारण साहू ने कहा कि मठ ( Bada Akhada math ) तोड़े जाने के बारे में साधु-सन्तों के साथ वार्ता सफल नहीं रही। इसलिए मठ तोड़ने के काम को स्थगित किया जा रहा है। इस बारे में साधु संतों के साथ फिर बात की जाएगी व सभी की सहमति के साथ मठ को तोड़ा जाएगा। बड़ा अखाड़ा मठ के महंत हरिनारायण दास ने कहा कि मठ जर्जर नहीं है। उसे कभी भी किसी सरकारी महकमें की ओर से नोटिस तक जारी नहीं किया गया।
इतिहासकारों का यह कहना है
इतिहासकारों के अनुसार वर्षों पहले जब जगन्नाथ मन्दिर ( Puri Jagannath Temple ) पर बाहरी ताकतों की ओर से आक्रमण किया गया, तब नागा साधुओं को जगन्नाथ मन्दिर को बचाने के लिए भेजा गया था। उन साधुओं ने 12 दिन तक मन्दिर के चारों ओर पहरेदारी की और मन्दिर बच गया था। तब इन साधुओं ने बड़ा अखाड़ा मठ की स्थापना की थी। तब से इस मठ का काम जगन्नाथ मन्दिर को सुरक्षा देना बन कर रह गया है। यहां के महन्त को कुम्भ मेले में 18 नागा अखाड़ा के साधु सन्तों के द्वारा चुना जाता है।