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गुंडिचा मंदिर पहुंचे महाप्रभु, मौसी नहीं खोल रही द्धार, लंबे समय बाद आने से हैं नाराज

locationभुवनेश्वरPublished: Jul 04, 2019 08:12:32 pm

Jagannath Rath Yatra 2019: महाप्रभु रथ यात्रा ( Jagannath Rath Yatra ) आज दोपहर में शुरू हुई। पहांडी अनुष्ठान के दौरान ( Jagannath Rath Yatra Update ) सुदर्शन चक्र, देवी सुभद्रा ( Goddess Subhadra ) , बलभद्र ( Balabhadra ) और जगन्नाथ भगवान ( Jagannath Mahaprabhu ) को रथ पर स्थापित किया गया। भक्तजनों ने जय जगन्नाथ और हरि बोल के उद्घोष के साथ रथों को खींचा और गुंडिचा मंदिर ( Gundicha Temple ) पहुंचाया।

Jagannath Rath Yatra 2019

Jagannath Rath Yatra

(पुरी,महेश शर्मा): पहले देवी सुभद्रा फिर बड़े भाई बलभद्र और उसके बाद महाप्रभु जगन्नाथ का रथ गुंडिचा मंदिर के लिए जय जगन्नाथ और हरि बोल के उद्घोष के साथ पहुंच रहा है। भारी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी के बीच भक्तों ने रथ की रस्सी पकड़ मोक्ष प्राप्ति और कल्याण की कामना पूरी होने के लिए विनती की। रथ यात्रा ( Jagannath Rath yatra ) शुरू से पहले कई परंपरा और धार्मिक अनुष्ठान पूरे किए गए। पहांडी अनुष्ठान के दौरान सुदर्शन चक्र, देवी सुभद्रा, बलभद्र और जगन्नाथ भगवान को रथ पर स्थापित किया गया।


महाप्रभु गुंडिचा मंदिर ( Gundicha Temple ) के बाहर रुके है। उनकी मौसी ने दरवाजा नहीं खोला। वह नाराज हैं कि इतने दिन से क्यों नहीं आए? यह दृश्य पारिवारिक मजबूती का प्रतीक है। रथयात्रा में शामिल होने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से लाखों की संख्या में लोग पुरी पहुंचे। यहां आने वालों का तांतां लगा है। रथयात्रा के पहले दिन यानी चार जुलाई को महाप्रभु जगन्नाथ को रथ पर बैठाया जाता है। वह भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा देवी के साथ मौसी के घर के लिए रवाना होते हैं।


मौसी का घर गुंडिचा मंदिर है। यहीं पर भगवान हर साल सात दिन रहने के लिए जाते हैं। आज के ही दिन रथ खींचने का काम शाम पांच बजे के करीब हुआ। इसके बाद हेरापंचमी का दिन जो लक्ष्मी माता को समर्पित है। महाप्रभु जगन्नाथ जब अपने निवास स्थान पर नहीं लौटते हैं तो माता लक्ष्मी परेशान हो जाती हैं। वह गुंडिचा मंदिर के निकट भगवान से मिलती हैं। इस दौरान मंदिर से वह पालकी में विराजमान निकलती हैं।


रथयात्रा पर्व का बड़ा पर्व बहुदायात्रा भी होता है जो 12 जुलाई को होता है। इस दिन महाप्रभु जगन्नाथ ( Jagannath Mahaprabhu ) अपनी मौसी के घर से लौटकर वापस अपने निवास स्थान आते हैं। इस दिन भी यह यात्रा शाम चार बजे शुरू होती है। बहुदायात्रा के बाद 13 जुलाई को सूनाबेशा होता है। इस दिन महाप्रभु का श्रृंगार किया जाता है। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत 1430 ईस्वी में की गयी थी। सूनाबेश शाम पांच बजे से रात 11 बजे तक होता है। 15 जुलाई को नीलाद्रि विजया होता है। इस दिन महाप्रभु और उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रह में मंदिर में स्थापित किया जाता है।


मुख्य पांच कार्यक्रम रथयात्रा के दौरान आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान ध्वजा परिवर्तन और प्रसाद वितरण नहीं किया जाता है। सारे कार्यक्रम गुंडिचा मंदिर में आयोजित किए जाते हैं। पर्व पर सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के कई जज, राज्यपाल प्रो.गणेशीलाल, मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी मौजूद रहे।

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