एग्जिट पोल के बाद बीजू जनता दल (बीजेडी) ने चुनावी नतीजों के आने के बाद की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। पार्टी के भरोसेमंद सूत्र ने बताया कि चुनाव के नतीजे यदि एक्जिट पोल से मिलते जुलते आए तो बीजेडी पहले की तरह यानी 2014 से 2019 तक मोदी शासनकाल वाली भूमिका यानी अघोषित सहयोगी के रूप में हो सकती है। न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। बाहर आलोचना करो और भीतर जरूरत पड़ने पर सहयोग करो। केंद्र सरकार के प्रति बीजेडी का रुख नरम रहेगा। एक चैनल को साक्षात्कार में बीजेडी के वरिष्ठ प्रवक्ता अमर पटनायक ने कहा कि एक्जिट पोल जैसा रिजल्ट रहा तो बीजेडी के सरकार में शामिल होने की संभावनाएं हैं। बताते चलें कि फानी चक्रवात का जायजा लेने के दौरान नरेंद्र मोदी की ओडिशा में नवीन से नजदीकियां चर्चा में रहीं। यही नहीं अमित शाह भी नवीन के शासन की तारीफ करते दिखे।
दूसरा यह कि यदि बीजेपी को सरकार बनाने में सहयोगी दलों की जरूरत पड़ सकती है तो बीजेडी केंद्र में एनडीए सरकार में साथ शामिल भी हो सकती है। लेकिन यदि बीजेपी का आंकड़ा बिगड़ता दिखा तो नवीन पटनायक क्षेत्रीय दलों के साथ जाकर कांग्रेस को भी सहयोग कर सकते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय राजनीति में नवीन पटनायक की वही भूमिका होगी जिसमें उन्हें ओडिशा का भला दिख रहा होगा। दूसरे शब्दों में कह लो तो ‘जैसी बहे बयार पीठ तैसी तन कीजै।’
लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल में ओडिशा में बीजेपी को फायदा पहुंचता दिख रहा है। ओ़डिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं जिसमें आधी से भी ज्यादा बीजेपी के खाते में जाती दिखायी गई हैं। बीजेडी की दस से भी कम। एक सूत्र के अनुसार खुफिया तंत्र द्वारा सीधे दिल्ली को भेजी गयी रिपोर्ट में लोकसभा में बीजेपी की 14 सीटें बतायी गई हैं। बीजेडी के लोग यह आंकड़ा मानने को तैयार नहीं हैं।
एग्जिट पोल में ओडिशा में बीजेडी को बीजेपी नुकसान तो पहुंचा रही है पर राज्य में बीजेडी की सरकार बनती दिख रही है। दूसरा विकल्प यह कि यदि केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनने की संभावना नहीं दिखी तो बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक किंग मेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं। ओडिशा की राजनीतिक नब्ज पर पहचानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल दास कहते हैं कि ओडिशा के हित में नवीन पटनायक केंद्र में किसी का भी साथ दे सकते हैं। वैसे उनकी प्राथमिकता एनडीए हो सकती है। कई बार ऐसे संकेत वह पहले भी दे चुके हैं। मोदी सरकार से बाहर रहते हुए भी वह सरकार की मदद करते रहे हैं। जरूरत पड़ी तो बीजेडी, केंद्र में शामिल भी हो सकती है। क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस के साथ जाने की संभावना कम दिखती है पर यदि ओडिशा हित में दिखा तो नवीन की भूमिका बदल भी सकती है।