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कामियाबी की गलत सीढिय़ां इंसान को फिर गर्त में पहुंचा देती है

locationभोपालPublished: Nov 03, 2018 04:00:26 pm

Submitted by:

hitesh sharma

भारत भवन में नाटक ‘सीढिय़ां’ का मंचन

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कामियाबी की गलत सीढिय़ां इंसान को फिर गर्त में पहुंचा देती है

भोपाल। भारत भवन में चल रहे नाट्य समारोह रंग एकाग्र का शुक्रवार को समापन हो गया। अंतिम दिन नाटक ‘सीढिय़ां’ का मंचन हुआ। दो घंटे की इस प्रस्तुति में २५ कलाकारों ने अभिनय किया है। अब तक इस नाटक के देश भर में 36 शो हो चुके है। दया प्रकाश सिन्हा लिखित इस नाटक का निर्देशन अरविंद सिंह ने किया है। नाटक में दिखाया गया कि किस प्रकार एक व्यक्ति कामियाबी पाने के लिए सीढ़ी-दर- सीढ़ी चढ़ता है। इतना ही नहीं वह कामियाबी पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को भी तैयार है। मुगल काल को रेखांकित करना नाटक वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है। नाटक में दिखाया गया कि सक्सेक के लिए गलत तरीका अपना भी गर्त में ले जाता है।

नाटक की शुरुआत मुगल बादशाह मोहम्मदशाह रंगीला के जीवन से होती है। वह अय्याशी भरी जीवन शैली जीता है। इसके साथ ही बादशाह के ढिंढोर्ची सलीम की भी कहानी चलती रहती है। वह निरंतर प्रयास करता रहता है कि किसी तरह उसे बादशाह के सेना में काम मिल जाए। वह कामियाबी पाने के लिए प्रेमिका तक को दांव पर लगाने से नहीं हिचकता। जब उनकी बादशाह की रियासत पर आक्रमण होता है तो सैनिकों के पास हथियार तक नहीं होते है। सैनिक युद्ध लड़े बिना ही हार जाते हैं। तब भी बादशाह को होश नहीं आता। ऐसे में सलीम अपने प्रयासों से सीढिय़ां चढ़ता हुआ अंत में खुद बादशाह बन जाता है।

सूरमा भोपाली कैरेक्टर पर काम
डायरेक्टर का कहना है कि नाटक के माध्यम से सत्य और असत्य, आस्था पर अनास्था, प्रेम पर वासना, करुणा पर हिंसा और विश्वास पर घृणा की जीत युग धर्म है। वर्तमान में भी तो इन रंगों की झलक है, कहीं न कहीं। हैं यदि अपने चारों ओर नजर डालें, तो सलीम ही सलीम दिखाई देंगे। डायरेक्टर का कहना है मैं फिल्म शोल में भोपाल के किरदार सूरमा भोपाली से हमेशा इंस्पायर रहा हूं। हमेशा चाहता हूं कि कोई ऐसा कैरेक्टर निभाया जाए।
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