नाटक की शुरुआत मुगल बादशाह मोहम्मदशाह रंगीला के जीवन से होती है। वह अय्याशी भरी जीवन शैली जीता है। इसके साथ ही बादशाह के ढिंढोर्ची सलीम की भी कहानी चलती रहती है। वह निरंतर प्रयास करता रहता है कि किसी तरह उसे बादशाह के सेना में काम मिल जाए। वह कामियाबी पाने के लिए प्रेमिका तक को दांव पर लगाने से नहीं हिचकता। जब उनकी बादशाह की रियासत पर आक्रमण होता है तो सैनिकों के पास हथियार तक नहीं होते है। सैनिक युद्ध लड़े बिना ही हार जाते हैं। तब भी बादशाह को होश नहीं आता। ऐसे में सलीम अपने प्रयासों से सीढिय़ां चढ़ता हुआ अंत में खुद बादशाह बन जाता है।
सूरमा भोपाली कैरेक्टर पर काम
डायरेक्टर का कहना है कि नाटक के माध्यम से सत्य और असत्य, आस्था पर अनास्था, प्रेम पर वासना, करुणा पर हिंसा और विश्वास पर घृणा की जीत युग धर्म है। वर्तमान में भी तो इन रंगों की झलक है, कहीं न कहीं। हैं यदि अपने चारों ओर नजर डालें, तो सलीम ही सलीम दिखाई देंगे। डायरेक्टर का कहना है मैं फिल्म शोल में भोपाल के किरदार सूरमा भोपाली से हमेशा इंस्पायर रहा हूं। हमेशा चाहता हूं कि कोई ऐसा कैरेक्टर निभाया जाए।