इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. ओमप्रकाश पांडे ने उपस्थित लोगों को अनंत सृष्टि की रहस्यमय तरंगों से हमारा जीवन किस तरह जुड़ा है, भारतीय सभ्यता के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमारा आधुनिक परिवेश में क्या सुधार की जरूरत है इस पर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ज्योतिषी ग्रहों की गति के हिसाब से आंकलन करते हैं।
उन्होंने कहा कि पाराशर ऋषि के सिद्धांत के अनुसार 5 हजार साल पहले की ग्रहीय स्थिति थी, आज भी उसी हिसाब से आकलन किया जाता है, जबकि समय के साथ ग्रहों की स्थिति बदल गई है। इस हिसाब से अब नए फार्मूले के हिसाब से आकलन किया जाना चाहिए, क्योकि अगर पुराने फार्मूले से हम आंकलन करेंगे तो कहीं न कहीं अंतर आएगा।
उन्होंने कहा कि हमारी वैदिक परम्परा हजारों साल पुरानी है। हमारी वैधशालाओं में पहले प्राचीन समय से ही इन रहस्यों को लेकर कार्य करती रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि लोग कहते हैं कि शून्य आर्यभट्ट ने दिया था,लेकिन यह यजुर्वेद के 17वें अध्याय में शून्य के बारे में बताया गया है,
यानि शून्य की खोज तो यजुर्वेद काल में ही हो गई थी, आर्यभट्ट ने तो इसे आगे बढ़ाया है। कार्यक्रम में शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी, महर्षि संस्थान के कुलपति भुवनेश शर्मा, मोनिका शुक्ला, ज्योतिषाचार्य अंजना गुप्ता ने भी अपने विचार रखे।
शंखनांद कर समां बांधा
इस कार्यक्रम में विशेष आकर्षण 10 वर्षीय बालक संभव द्वारा किया गया शंखनाद भी रहा। उन्होंने आकर्षक शंखनाद कर आयोजन स्थल पर समां बांध दिया। इसी प्रकार दिव्यता गर्ग द्वारा गणेश वंदना की आकर्षक प्रस्तुति दी गई।