एल्हान का कहना है कि राजाशाही के समय इन्हें यूज करने का अधिकारी सिर्फ रॉयली फैमिली को ही था। इसे यूज करने से डायबिटिज कंट्रोल में रहती है। लंबे समय तक यूज करने से डायबिटिज की समस्या खत्म भी हो जाती है। इसे कंडों की भट्टी तैयार कर पकाया जाता है। एक पॉटरी तैयार होने में सात दिनों का समय लगता है। इसे दूध, दही जैसे आइटम्स रखने पर भी दो से तीन दिन तक ये खराब नहीं होते। ये इन बर्तनों की सबसे बड़ी खासियत है। हालांकि ये बर्तन मिट्टी से बने अन्य बर्तनों की अपेक्षा काफी कास्टली हैं।
सौ साल पुराने पेड़ों की परत को दिया आर्टिस्टिक लुक
वहीं, उमरिया जिले के लौढ़ा गांव से बैगा जनजाति के अमर बैगा स्थानीय जंगलों में पाई जाने वाली चीजों को आर्टिस्ट लुक देते हैं। अमर का कहना है कि वहां जंगलों में सैकड़ों पेड़ सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं। बारिश के मौसम में इन पेड़ों के तनों पर एक परत उग जाती है। जो गर्मी के मौसम तक एक आकार ले लेती है। ये दिखने में काफी खूबसूरत होती है। इसे तोड़कर इसे आर्टिस्ट लुक दिया जाता है। गांव में इसका उपयोग दिवाली के समय किया जाता है। इसमें एक विशेष किस्म का तेल होता है। इसे जलाने पर इसका छोटा सा टूकड़ा भी रातभर जलता है। वे हल्दू पेड़ की लकड़ी पर भी कारिगरी करते हैं। इससे उन्हें विभिन्न प्रकार के मुखौटे भी तैयार किए हैं। साथ ही टुमड़ी और गिलकी को सूखाकर भी नेचरल कलर्स से रंगकर नया लुक दिया है।