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चार चरणों के सियासी रण में तीसरा चरण होगा बेहद अहम: दांव पर होगी तोमर-सिंधिया की प्रतिष्ठा!

locationभोपालPublished: Mar 23, 2019 01:28:47 pm

सूरज की तपन से कदमताल करेगा सियासी पारा…

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चार चरणों के सियासी रण में तीसरा चरण होगा बेहद अहम: दांव पर होगी तोमर-सिंधिया की प्रतिष्ठा!

भोपाल। प्रदेश के सियासी हलके में इन दिनों लोकसभा चुनाव की गरमाहट पूरी तरह से भर चुकी है। अब सभी 29 सीटों के लिए पहली बार चार चरणों में मतदान होगा। प्रदेश की राजनीति के लिहाज से इसके बड़े मायने हैं।

पहले चरण में 29 अप्रैल को छह सीटों पर वोट पड़ेंगे। इसकी अधिसूचना दो अप्रैल को जारी की जाएगी। इसी दिन से नामांकन दाखिल किए जाएंगे।

इसकी शुरुआत दोनों प्रमुख दलों सियासी दलों के झंडावरदारों के क्षेत्र महाकौशल से होगी। ये मुख्यमंत्री कमलनाथ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह का प्रभाव क्षेत्र है।

इसी चरण में छिंदवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में वोट पड़ेंगे। इस सीट से मुख्यमंत्री कमलनाथ चुनाव मैदान में होंगे। वहीं आखिरी चरण यानि मप्र के चौथे चरण में 19 मई को मालवा-निमाड़ की आठ सीटों पर मतदान होगा। इसमें लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की इंदौर सीट भी शामिल है।

मतगणना 23 मई को होगी। वर्तमान में 29 में से 26 सीटें भाजपा और 3 कांग्रेस के पास हैं। दोनों दलों के सामने बड़ी जीत के साथ ही भीषण गर्मी के बीच कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में निकालने की भी चुनौती होगी।

तीसरा चरण: तोमर-सिंधिया की प्रतिष्ठा होगी दांव पर…
12 मई: 8 सीट: मुरैना, भिंड, ग्वालियर , गुना, सागर, विदिशा, भोपाल व राजगढ़
नामांकन: 16-23 अप्रैल तक। नामांकन वापसी: 26 अप्रैल


1. भोपाल: यहां कांग्रेस 35 साल से हार रही है। भाजपा की इस मजबूत सीट ने इस बार भी कांग्रेस में खलबली मचा रखी है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उतारने की चर्चा है। उधर, भाजपा की ओर से वर्तमान सांसद आलोक संजर, महापौर आलोक शर्मा, वीडी शर्मा समेत कई दावेदार हैं।
नरेंद्र सिंह तोमर भी यहां से लडऩे की इच्छा रखते हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में इस सीट के समीकरण बदल गए हैं। कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं और पांच पर कड़ी टक्कर देकर अपना आधार बढ़ाया है।
2. ग्वालियर: सिंधिया परिवार के प्रभाव वाली ग्वालियर सीट फिर चर्चा में है। यहां सिंधिया परिवार का प्रभाव है। नरेंद्र सिंह तोमर अपवाद रहे, पर 2014 में मोदी लहर के बाद भी महज 29 हजार की बढ़त ले पाए थे।
विधानसभा की आठ में से सात सीटें कांग्रेस ने जीती और एक लाख से अधिक वोटों की बढ़त से तोमर का गणित बिगाड़ दिया है।

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इस बार तोमर सीट बदलने की तैयारी में हैं। यहां से कांग्रेस अशोक सिंह को उतार सकती है। भाजपा में अनूप मिश्रा और माया सिंह का नाम चर्चा की है।

3. मुरैना: यहां 28 साल से भाजपा का कब्जा है। 1991 में बारेलाल जाटव कांग्रेस के आखिरी सांसद चुने गए थे। नरेंद्र सिंह तोमर 2009 में जीते। भाजपा ने 2013 में विधानसभा चुनाव हारे अनूप मिश्रा पर 2014 के लोकसभा चुनाव में दांव खेला जो सफल रहा।
हाल के विधानसभा चुनाव में अनूप फिर पराजित हो गए हैं। ग्वालियर से वोटों का गणित बदलने के कारण केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मुरैना से भी दावेदारी है। कांग्रेस यहां से रामनिवास रावत को उतारने की तैयारी में है।
4. गुना: गुना, शिवपुरी और अशोकनगर जिले तक फैली इस सीट में अब तक 19 चुनाव हो चुके हंै। इनमें उपचुनाव भी शामिल हैं। यह सीट पांच बार ही सिंधिया परिवार से बाहर गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया चार बार से सांसद हैं।
यहां से फिर उनके उतरने की संभावना है। हालांकि, ग्वालियर से लडऩे की चर्चा भी है। सिंधिया उत्तरप्रदेश के प्रभारी भी हैं। वहां चुनाव प्रचार अभियान के साथ खुद का क्षेत्र साधना होगा।

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हालांकि, उनकी पत्नी प्रियदर्शनी राजे यहां सक्रिय हैं। इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार के संकट से जूझ रही है।

5. राजगढ़: राजगढ़ कांग्रेस का गढ़ है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह यहां से पांच बार सांसद रहे। इसमें से चार बार कांग्रेस और एक बार भाजपा के टिकट पर जीते थे। यहां से कांग्रेस के नारायण सिंह आमलावे को उतारा जा सकता है। भाजपा चौकाने वाला नाम ला सकती है।
6. विदिशा: विदिशा से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी चुनाव जीत चुके हैं। यहां से शिवराज सिंह चौहान पांच बार सांसद रहे। उन्होंने 2006 में मुख्यमंत्री बनने के बाद ये सीट सुषमा स्वराज को उपहार में दी। वे 2014 में दूसरी बार जीतीं और विदेश मंत्री बनीं। अब शिवराज और उनकी पत्नी साधना सिंह का नाम चर्चा में है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने विदिशा मुख्यालय की सीट पर जीत दर्ज की है। छह सीटें हारने के बाद भी कांग्रेस ने 2014 में सुषमा की चार लाख से अधिक वोटों से हुई जीत के अंतर को एक लाख तक ला दिया है। यहां से कांग्रेस नया चेहरा उतार सकती है।
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7. भिंड: भिंड सीट को 2014 के चुनाव में प्रदेश की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना के लिए याद किया जाता है। डॉ. भागीरथ प्रसाद को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया था। कांग्रेस का टिकट घोषित होने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए और डेढ़ लाख से अधिक वोटों से जीते, लेकिन पांच साल में यह क्षेत्र डांवाडोल हो गया।
एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव के बाद बड़ा आंदोलन और झड़प यहां हुई। इसका असर विधानसभा चुनाव में दिखा ,जब कांग्रेस ने पांच सीट जीतकर बड़ा उलटफेर कर दिया। भाजपा को महज दो सीट मिली। एक सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई। भाजपा 99 हजार मतों से पिछड़ चुकी है।
हालांकि, ये सीट कांग्रेस 30 साल से हार रही है। 2009 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित की गई है, पर भाजपा का दबदबा बना रहा। भाजपा यहां से अशोक अर्गल और कांग्रेस महेन्द्र बोद्ध को उतार सकती है।
8. सागर: यहां 1996 से लगातार भाजपा का कब्जा रहा है। 2008 तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सागर सीट से डॉ. वीरेंद्र कुमार खटीक चार बार सांसद रहे। परिसीमन के बाद सामान्य होने पर 2009 और 2014 में भी भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। कांग्रेस यहां आखिरी बार 1991 में जीती थी।
इसके बाद कभी सफल नहीं हो सकी। हालांकि, विधानसभा चुनाव 2018 में यहां मिली सफलता के बाद कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में उम्मीद बनी है। भाजपा आठ में से छह सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन उसकी वोटों की बढ़त कम हुई है।
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण यादव सवा लाख वोटों से जीते थे। पिछले विधानसभा चुनाव को देखें तो यह फासला घटकर 79 हजार का हो गया है। भाजपा इस बार चेहरा बदल सकती है। कांग्रेस पुराने नेता प्रभु सिंह ठाकुर पर दांव लगा सकती है।
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