गुरु अपने शिष्यों से कहते हैं कि चलो यहां से यहां कोई बुद्धिमान नहीं है। परन्तु गोबर्धन दास कहता है कि मैं यहीं रहूंगा, इससे अच्छा स्थान दुनिया में कहीं हो ही नहीं सकता। गुरु नारायण दास को साथ लेकर उस नगर से चले जाते है और जाते-जाते गोबर्धन दास से कहते है कि यदि कोई मुसीबत हो तो याद करना हमें हम आ जाएंगे। गोबर्धन दास कई दिनों तक उस नगर में खुशहाली के साथ रहता है। एक दिन राजा के राजा के दरबार में बकरी मरने का एक मुकदमा आता है। उस मुकदमे में कोतवाल को फांसी की सजा सुनाई जाती है।
स्वर्ग का राजा बनने का देता है झांसा मंत्री अपने बुद्धि बल से गोबर्धन को फंसा देता है, फिर गोबर्धन अपने गुरु को याद करता है। गुरु नारायण दास को लेकर आते हैं और राजा से कहते है कि स्वर्ग में इंद्र का सिंघासन खाली है। जो भी पहले जाएगा, वह स्वर्ग का राजा बनेगा। गुरु की यह युक्ति सुनकर राजा स्वयं के स्वर्ग जाने की बात कहता और गोबर्धन दास को छोड़ देता है। इसी के साथ नाटक का अंत होता है। इस नाटक के माध्यम से कलाकारों ने दर्शकों को संदेश दिया कि सदा ही बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ रहना चाहिए, क्योंकि मूर्खों के साथ रहने से हम कभी सुरक्षित नहीं रह सकते और मुर्ख व्यक्ति हमें पता नहीं कब किस मुसीबत में फंसा दे।