जीवन की हकीकत का बयान करता यह नाटक एक एकल परिवार में रहने वाले बुजुर्ग दंपति की असल ङ्क्षजदगी को मंच पर दिखाता है। जयवंत दलवी द्वारा वर्ष 1980 में लिखा गया यह मराठी का चर्चित नाटक है। इस नाटक का निर्देशन पंजाबी फिल्मों के एक्टर बनिन्दरजीत सिंह ने किया है। हालांकि व्यस्तता के चलते वे खुद भोपाल नहीं आ सके। भारत भवन में मंचित नाटक सहायक निर्देशक हरविंदर सिंह के निर्देशन में इस नाटक की आठवीं प्रस्तुति हुई। नाटक को चंडीगढ़ की इम्पैक्ट आर्ट संस्था के कलाकारों ने मंचित किया।
कहानी : नाटक एक घर से शुरू होता है जिसमें सिर्फ दो बुजुर्ग दंपती अपने गूंगे नौकर के साथ रहते हैं। बुजुर्ग दंपति नाना और नानी के दो बेटे हैं दीनू और नंदू। दीनू, अमरीका में काम करता है और नंदू कश्मीर में है फौज में। दीनू बहुत कम अपने घरवालों से मिलने आता है लेकिन समय-समय पर पैसे भेजता रहता है, लेकिन ऐसी जिंदगी में पैसों की नहीं, उनके साथ की जरूरत होती है। बुजुर्ग दंपति के पास बात करने के लिए कोई नहीं है, इसलिए कभी-कभी वे आपस में ही लड़ते रहते हैं। कभी किसी रांग नंबर पर बात करते रहते हैं। कभी किसी अनजान स्टूडेंट को अपने यहां पेइंग गेस्ट बनने के लिए कहते हैं। जैसे-जैसे नाटक की कहानी आगे बढ़ती है दर्शकों को यह पता लगता है कि नंदू की लड़ाई में मौत हो गई है। जिस कारण दोनों नाना-नानी को बहुत गहरा सदमा लगता है। उधर, अमेरिका वाला बेटा वहीं शादी करके सेटल हो जाता है। आखिरकार अकेलापन उन्हें इतना तोड़ देता है कि दोनों नशे की गोलियां खाकर मरने का निर्णय ले लेते हैं। तभी नौकर अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर पहुंचता है। इससे बूढ़े दंपति के चेहरे पर खुशी आ जाती है और ङ्क्षजदगी जीने का मकसद मिल जाता है।
1995 में इस नाटक पर बन चुकी बॉलीवुड मूवी
यह नाटक मनोरंजन के साथ-साथ एक बहुत ही गहरा मार्मिक देता है, जिसके कारण इस नाटक को अपने जमाने के सब से बेहतरीन नाटकों में से एक गिना जाता था लेकिन मजबूत कंटेट के चलते यह नाटक आज भी प्रासंगिक है। वर्ष 1995 में बॉलीवुड डायरेक्टर ज्योति सरूप इस नाटक पर बेस्ड इसी नाम से फिल्म भी बना चुके हैं। फिल्म में श्रीराम लागू और सुलभा देशपांडे मुख्य भूमिकाओं में थे। इस नाटक के जरिए यंग जेनरेशन को यह संदेश देने की कोशिश रही कि जीवन में परिस्थितियां कैसी भी हों लेकिन अपने पेरेंट्स को कभी निग्लेक्ट मत करो। उम्र के इस पड़ाव में उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत आपकी होती है।
हैप्पी एंडिंग के लिए किया स्क्रिप्ट में बदलाव
नाटक सहायक निर्देशक हरविंदर सिंह ने बताया कि मूल नाटक का अंत दुखांत है, उसके अंत में बुजुर्ग दंपति आत्महत्या कर लेते हैं लेकिन हमने इसमें बदलाव कर पेश किया। नाटक की हैप्पी एंडिंग और इस समस्या का समाधान बताने के लिए हमने स्क्रिप्ट में थोड़ा बदलाव किया।