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राज्यपाल के अधिकारों में कटौती की तैयारी

locationभोपालPublished: Jul 15, 2019 11:23:02 pm

– कुलपति नियुक्ति के विवाद
– माखनलाल यूनिवर्सिटी में कुलपति चयन प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगी महामहिम- इसी सत्र में पारित हो सकता है संशोधन विधेयक

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भोपाल। इंदौर और उज्जैन विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्ति के विवाद के बीच अब राज्य सरकार राज्यपाल के अधिकारों में कटौती करने जा रही है। हालांकि, ये प्रावधान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ही किया जा रहा है।
विधानसभा के मानसून सत्र में माखनलाल यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक को पारित कराने की तैयारी है। इसके बाद महामहिम इस यूनिवर्सिटी के कुलपति चयन की प्रक्रिया से पूरी तरह से बाहर हो जाएंगी। राज्य सरकार अपने हिसाब से माखनलाल में कुलपति की नियुक्ति कर सकेगी।
वर्तमान प्रावधान के अनुसार माखनलाल यूनिवर्सिटी की महापरिषद सबसे पॉवरफुल बॉडी होती है। इसमें राज्यपाल किसी भी यूनिवर्सिटी के कुलपति को नामांकित कर महापरिषद में सदस्य बनाती हैं। माखनलाल यूनिवर्सिटी में कुलपति का चयन महापरिषद की मंजूरी से ही होता है, एेसे में महामहिम का सदस्य न होने से उनका क्षेत्राधिकार पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
अन्य विश्वविद्यालयों से अलग है यहां का विधेयक –
पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना अन्य विश्वविद्यालयों से अलग हटकर है। अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति का अधिकार सीधे राज्यपाल को है। चयन समिति राज्यपाल को नामों का पैनल भेजती है, राज्यपाल चाहे तो इस पैनल से या फिर इससे भी अलग हटकर किसी अन्य योग्य व्यक्ति को कुलपति नियुक्ति कर सकते हैं।

राज्य और राज्यपाल में विवाद की वजह

– राज्य सरकार ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में धारा 52 लगाकर कुलपति बर्खास्त कर दिए थे। इसे लेकर राज्यपाल नाराज हो गई थीं।
– इसी टकराहट के चलते देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में 20 दिन बाद भी कुलपति की नियुक्ति नहीं हो सकी। सरकार ने नए कुलपति के लिए राज्यपाल को नामों की पैनल भेजी लेकिन राज्यपाल ने इसे खारिज करते हुए नई पैनल सरकार को भेज दी। सरकार को ये नाम मंजूर नहीं है। टकराहट के चलते यहां कुलपति नियुक्त नहीं हो सका है। इसका असर यहां के काम-काज पर पड़ रहा है। यहां की शैक्षणिक, वित्तीय और प्रवेश व्यवस्था गड़बड़ा गई है।
– विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कुलपति नियुक्ति का विवाद तो हाईकोर्ट तक जा पहुंचा है। यहां के कुलपति एसके पाण्डेय बर्खास्त किए गए। धारा ५२ लगाने के बाद सरकार ने राज्यपाल को जो नामों की पैनल भेजी उससे हटकर राज्यपाल ने प्रो. बालकृष्ण शर्मा को कुलपति नियुक्त कर दिया। इस पर होल्कर कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. शंकरलाल गर्ग ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसको लेकर हाईकोर्ट ने राजभवन से जबाब तलब किया है।
दिग्विजय सिंह के समय अधिक रही टकराहट –
दिग्विजय शासनकाल में राजभवन और राज्य सरकार में अधिक टकराहट रही। यह मौका दिग्विजय सिंह के दूसरे कार्यकाल (वर्ष1998 से 2003) का था। उस दौरान भाई महावीर राज्यपाल थे। सबसे ज्यादा टकराहट विश्वविद्यालयों को लेकर थी। चूंकि विश्वविद्यालयों पर सीधा नियंत्रण राजभवन का होता है, इसलिए राजभवन को राज्य सरकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं था।
इसको लेकर राज्य सरकार ने कुलपति और कुलसचिवों की नियुक्ति और तबादले के अधिकार अपने पास लेने के प्रयास किए। कुलसचिवों की नियुक्ति और तबादले के अधिकार तो सरकार लेने में कामयाब हो गई लेकिन कुलपति की नियुक्ति के अधिकार लेने में सफल नहीं हो सकी।
संशोधन विधेयक इसलिए लाया जा रहा है क्योंकि अभी माखनलाल यूनिवर्सिटी के महापरिषद् गठन की प्रक्रिया लम्बी है। इसे सरल करने के लिए संशोधन विधेयक सदन में लाया जा रहा है। इसमें किसी के अधिकार कम करने जैसी बात नहीं है।
– पीसी शर्मा, जनसंपर्क मंत्री

विवाद जैसी कहीं कोई स्थिति नहीं है। राज्यपाल को पांच बार स्मरण पत्र और व्यक्तिगत रुप से भेंट भी कर चुका हूं। मैंने यह भी आग्रह किया है कि जब तक नाम पर सहमति नहीं बनती तब तक उच्च शिक्षा विभाग आयुक्त अथवा इंदौर संभागायुक्त को यूनिवर्सिटी के कुलपति का प्रभार दे दिया जाए।
– जीतू पटवारी, उच्च शिक्षा मंत्री

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