नियमों का पालन नहीं किया
कुल पैसे 131 करोड़ रुपए जमा किए, लेकिन 111.29 करोड़ रुपए डूबत में चले गए। अब यह पैसे वापस मिलने की संभावना नहीं है। इन पैसों के निवेश के लिए तत्कालीन अधिकारियों ने न तो संचालक मंडल से अनुमोदन लिया और न ही सहकारी बैंकिंग बायलॉज/ नियमों का पालन किया।
आईएफएसएल में ही निवेश किया गया
नियमानुसार सरकारी अथवा निजी बैंकों में पैसे निवेश करने का प्रावधान है, लेकिन तत्कालीन बैंक अधिकारियों ने एक डिफॉल्टर नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) में निवेश कर दिया। सहकारिता विभाग ने ईओडब्ल्यू को जो साक्ष्य भेजे हैं, उनमें करीब 331 करोड़ रुपए इसी तरह एनबीएफसी कंपनी में निवेश करने का भी जिक्र है। इनमें सबसे अधिक पैसा आईएफएसएल में ही निवेश किया गया है।
पांच सदस्यीय कमेटी ने की जांच
इसकी सहकारी विभाग ने 16 अप्रेल 2019 को अपर आयुक्त आरसी घिया, अपेक्स बैंक के एमडी प्रदीप नीखरा, और मैनेजर एवं वित्त प्रबंधन कक्ष प्रभारी आरबीएन पिल्लई की जांच कमेटी बनाकर जांच भी करवाई। बाद में इस कमेटी में संयुक्त आयुक्त अरविंद सिंह सेंगर व एचएस बघेल को भी शामिल किया गया। पांचों सदस्यों की टीम ने जांच कर शासन को 26 अप्रेल को जांच रिपोर्ट सौंप दी।
जिम्मा ईओडब्ल्यू को सौंप दिया
कमेटी की इस रिपोर्ट को तत्कालीन बैंक अधिकारियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी कि सहकारी बैंक अधिकारियों को जांच करने का अधिकार नहीं है। विश्वकर्मा और तीन अन्य को हाई कोर्ट से स्टे मिल गया। अब स्टे वैकेट हुआ तो राज्य शासन ने इस मामले की जांच का जिम्मा ईओडब्ल्यू को सौंप दिया।
91 हजार करोड़ की कर्जदार है आईएलएफएस कंपनी
सहकारी बैंक के पैसों सहित ही अन्य संस्थाओं के इस कंपनी में करीब 91 हजार करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। 57 हजारा करोड़ रुपए बैंकों का बकाया है। धीरे-धीरे कंपनी की साख गिरती गई और सितंबर, 2018 में कंपनी की रेटिंग बेहद गिर गई। इसके चलते भोपाल नागरिक सहकारी बैंक के 111.29 करोड़ रुपए और इसका ब्याज भी मिलने की उम्मीद नहीं है।
शासन ने ईओडब्ल्यू को जांच के लिए कहा है। पत्र भेजकर जांच करने के लिए लिखा है, जिसका हमने परीक्षण करना शुरु कर दिया है। जांच के लिए दस्तावेजों व साक्ष्यों का परीक्षण किया जा रहा है।
केएन तिवारी, डीजी, ईओडब्ल्यू