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भोपाल

डायरेक्टर बनने के लिए पब में की बाउंसर की नौकरी

शहीद भवन में नाटक पर्ची वाली किस्मत का मंचन

भोपालAug 08, 2018 / 08:22 am

hitesh sharma

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डायरेक्टर बनने के लिए पब में की बाउंसर की नौकरी

भोपाल। शहीद भवन में मंगलवार को दोस्त नाट्य संस्था ने नाटक ‘पर्ची वाली किस्मतÓ का मंचन किया गया। एक घंटे दस मिनट के इस नाटक का लेखन, परिकल्पना और निर्देशन अक्षय प्रशांत ने किया है। अक्षय का यह पहला डायरेक्शन है।

अक्षय का कहना है कि पहला डायरेक्शन होने के कारण संस्कृति विभाग से फंड भी नहीं मिल सकता था। जेब में इतने पैसे भी नहीं थे कि हॉल बुक कर सकूं। दोस्त से बारह हजार उधार लेकर ऑडिटोरियम बुक किया। शो के दो माह पहले एमपी नगर स्थित एक पब में बाउंसर की नौकरी करने लगा।

वहां से बीस हजार रुपए मिलने पर दोस्त की उधारी चुकाने के बाद शो के लिए कास्ट्यूम व अन्य व्यवस्था की। नाटक में दिखाया गया कि युवा पीढ़ी आसानी से किसी के भी बहकावे में आ जाती है। बिना सोचे-समझे फैसला लेने से जीवन बर्बाद हो जाता है।

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नाटक की कहानी दो दोस्त अनुज और राजीव की है। दोनों करियर का फैसला करने के लिए एक पर्ची का सहारा लेते हैं। अनुज की पर्ची में अभिनय और राजीव की पर्ची में राजनीति आता है। अनुज मुंबई और राजीव दिल्ली जाने का फैसला करते हैं।
अनुज अपने पिता से कहता है कि उसकी पुलिस में नौकरी लगने वाली है। रिश्वत में उससे बारह लाख रुपए मांगे जा रहे हैं। पिता से पैसे लेकर वह 2.50 लाख रुपए राजीव को देकर मुंबई चला जाता है। वहां एक ठग उससे 9.50 लाख रुपए ठग लेता है। वह जैसे-तैसे एक साल वहां रहता है।
इधर, राजीव भी नेता बनने की बजाए शराब तस्कर बन जाता है। दोनों गांव वापस लौटते हैं। राजीव, अनुज को अपने साथ दिल्ली ले जाता है। दोनों ही तस्करी का काम करने लगते हैं। अंतत: पुलिस दोनों को पकड़ लेती है।
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पिता को होता है गलती का एहसास
अनुज के पिता चौधरी बलराज सिंह उन्हें छुड़ाकर गांव लाते हैं। उन्हें गलती का एहसास होता है, वह कहते हैं कि किसी को भी उधार देने से पहले पैसे की चिंता की जाती है, तो बच्चों से खर्च का हिसाब क्यों नहीं मांगा जाता। उनसे सबूत क्यों नहीं मांगा जाता। पेरेन्ट्स की लापरवाही के कारण बच्चे बिगड़ जाते हैं। गांव और परिवार वालों के तानों से तंग आकर वह घर में रखी बंदूक से आत्महत्या कर लेता है।

सतीश कौशिश का इंटरव्यू सून आया नाटक का आइडिया
प्रशांत का कहना है कि कुछ साल पहले उसने सतीश कौशिश का एक इंटरव्यू सुना था। उन्होंने कहा कि फिल्म लाइन में आने से पहले उन्होंने पर्ची का सहारा लिया था। बस, यहीं से इस पर नाटक तैयार करने का आइडिया। वहीं, गांव में एक व्यक्ति झूठ बोलकर परिवार से पैसे लिए तो इसे भी कहानी से जोड़ लिया। करीब एक साल पहले इस पर नाटक तैयार करने का आइडिया आया। कहानी लिखने में तीन माह का समय लगा।

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