वर्ष 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का टीकमगढ़ आगमन हुआ। ढोंगा स्थित स्टेडियम में सभा होनी थी। पूरे जिले से बड़ी संख्या में लोग सभा को सुनने जा रहे थे।
लोगों ने उन्हें भी सभा में चलने के लिए कहा, परंतु समय मंदिर में की जाने वाली साफ-सफाई का था तो उन्होंने साथियों का आग्रह ठुकरा दिया। सभा में गांधी देर से पहुंचीं, वहां से उन्हें कुंडेश्वर मंदिर दर्शन के लिए जाना था।
सभा के बाद उनका काफिला कुंडेश्वर के लिए निकला, जो प्रतापेश्वर शिव मंदिर के सामने से गुजरा। श्रीवास्तव मंदिर की सेवा में तल्लीन थे। मंदिर से कुछ मीटर की दूरी पर जाकर इंदिरा गांधी का काफिला रुक गया।
उन्होंने प्रतापेश्वर मंदिर में दर्शन की इच्छा जताई। सुरक्षा दस्ते ने मंदिर को चारों तरफ से घेर लिया, कुछ देर बाद गांधी मंदिर पहुंच गईं।
कदमों में झुक गईं
बहादुर श्रीवास्तव बताते हैं, मंदिर की सफाई करते हुए जैसे ही पीछे मुडकऱ देखा तो इंदिरा गांधी सामने थीं। वे सीधे मंदिर में चली गईं। बहादुर को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने पूजा के लिए फूल दिए। शिव को फूल चढ़ाने के बाद इंदिरा गर्भगृह से बाहर निकलीं तो उनके कदमों की ओर झुक गईं।
बहादुर ने पीछे हटते हुए हाथ जोड़ लिए और बताया कि वे पुजारी नहीं हैं। उन्होंने जल्दी से अपना परिचय दिया। उन्हें डर लग रहा था कि कहीं कुछ अनर्थ नहीं हो जाए, लेकिन इंदिरा बोलीं, भगवान की सेवा करने वाले शख्स की जगह पुजारी से कम नहीं होती है। प्रधानमंत्री के मुंह से निकले ये शब्द देर तक उनके कानों में गूंजते रहे। – (जैसा शिक्षाविद् बाबाजी बहादुर श्रीवास्तव ने टीकमगढ़ के विवेक गुप्ता को बताया।)