भोपाल। कभी गुलजार था यह शहर, किसी का बचपन बीता, तो किसी के जन्म की खुशियां मनाई गई। कोई पढ़ लिखकर जवान हुआ तो कोई बड़ा अफसर बन गया। मध्यप्रदेश का हरसूद शहर कभी जीता जागता शहर था। 700 साल पुराना ये शहर अब नक्शे से भी गायब हो गया है। 30 जून 2004 को ही यह शहर पूरी तरह से पानी में डूब गया था।
कई धर्मों के लोगों के आस्था के केंद्र मंदिर, मस्जिद और ईदगाह खंडहर हो गए थे। लेकिन, लोगों के सीने में आज भी जिंदा हैं हरसूद की यादें। जन्म भूमि से बिछड़ने का दर्द। कई लोग इसे सोशल मीडिया पर बयां कर रहे हैं। हर कोई बोल रहा है कि हरसूद मरा नहीं, वो हमारे दिलों में जिंदा है। उसे हमने मां नर्मदा को सौंप दिया है।
नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर डैम पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। जब-जब भी नर्मदा पर बने बांधों का जिक्र होता है तो हरसूद में अपना सबकुछ गंवाने वाले लोग सिहर जाते हैं।
हरसूद के विस्थापित लोग कहते हैं कि नर्मदा नदी पर बने बांध की गहराइयों में यह शहर भले ही मर गया है, लेकिन हम लोगों के दिलों में इसकी यादें अमर हैंं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेंगी। आज भी हरसूद की हाबोहवा में पले-बढ़े लोग अपने कस्बे को याद करते हैं तो उनके मन में एक दर्द का भाव उमड़ पड़ता है, उनके जख्म फिर हरे हो जाते हैं।
700 वर्षों का है इतिहास
हरसूद को 13वीं शताब्दी के आसपास राजा हर्षवर्धन ने बसाया था। हर्षवर्धन के कार्यकाल में हरसूद राज्य की राजधानी था। ऐसा इतिहास के पन्नों में उल्लेख मिलता है। अब यह नर्मदा के पानी में पूरी तरह से डूब गया है। लेकिन, डूबने से पहले इसके हजारों लोगों को खंडवा के पास छनेरा में बसा दिया गया था। इस विस्थापन को एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन माना जाता है।
भोपाल से 200 किलोमीटर दूर था हरसूद कस्बा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से दो सौ किलोमीटर दूर था हरसूद कस्बा। कस्बे के लोग छनेरा, खिरकिया, हरदा, खंडवा, इंदौर और भोपाल तक बसते चले गए। हालांकि यहां के लोगों को विस्थापन से पहले मुआवजा भी दिया था। लेकिन, वो नाकाफी रहा।
सवा लाख लोगों का विस्थापन
हरसूद शहर के डूब में आने से पहले करीब सवा लाख से अधिक लोगों को अपने ही घरों से बाहर कर दिया गया था। यह एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन कार्य था। इस डूब में हरसूद के साथ ढाई सौ गांव के बाशिंदे भी आ गए।
दुनियाभर में हुआ था विरोध
हरसूद के डूबने के लिए नर्मदा पर बने इंदिरा सागर बांध और सरदार सरोवर बांध भी जिम्मेदार माने जाते हैं। इन बांधों के कारण ही यह शहर अब लुप्त हो गया है। 31 जनवरी 1989 को सरदार सरोवर बांध बनने का विरोध भी हुआ था। इस आंदोलन में पर्यावरण के लिए काम करने वाले बाबा आमटे, सुंदरलाल बहुगुणा, शिवराम कारन्त, स्वामी अग्निवेश, मेघा पाटकर और शबाना आजमी जैसी हस्तियों ने भी विरोध किया था।
यह भी है खास
-नए हरसूद (छनेरा) पांच हजार लोगों को बसाने की योजना थी, लेकिन करीब 23 सौ परिवार ही पहुंचे। लोगों को सपना दिखाया गया था कि छनेरा को चंडीगढ़ की तर्ज पर बसाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो काफी लोग अलग-अलग शहरों में बस गए। लोगों को मकान के स्थायी पट्टे भी नहीं दिए गए।
याद आती है तो नम होती हैं आंखें
हरसूद उजड़ जाने के बाद अलग-अलग शहरों में बस गए लोगों की आंखें 30 जून को नम हो जाती है। इसके अलावा जब-जब भी नर्मदा बेल्ट में बने बांधों का जिक्र होता है तो पुराने जख्म हरे हो जाते हैं। कई बुजुर्ग अपने बच्चों को पुराने हरसूद का भूगोल समझाते हैं। वो कहानी सुनाते हैं। इस बार भी सरदार सरोवर पर बनी वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा के अनावरण के दिन
हरसूद को डूबते आंखों से देखा
हरसूद से विस्थापित होने के बाद भोपाल में रह रहे अरविंद शर्मा भी उन लोगों में से हैं जो अपनी यादों को नहीं भूलना चाहते। अक्सर ही वे अपने पूर्वजों की भूमि को याद करते हैं। वे अक्सर ही फेसबुक पर हरसूद में बिताए हुए बचपन की यादों को सभी के साथ साझा करते हैं। अरविंद कहते हैं कि अब तो मां नर्मदा को सौंप दिया हरसूद, लेकिन वो मरा नहीं हमारे दिलों में आज भी जिंदा है।
यहां देखें अरविंद शर्मा की फेसबुक पोस्ट….।