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शहर में सफाई के 300 करोड़ रु. के काम एनजीओ के भरोसे, मॉनीटरिंग भी नहीं की

locationभोपालPublished: Mar 08, 2019 01:47:38 am

Submitted by:

Ram kailash napit

निगम प्रशासन की बड़ी चूक: अफसरों की लापरवाही से गिर गई स्वच्छता सर्वे में रैंकिंग

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West Collection

भोपाल. शहरी स्वच्छता की कमान नगर निगम ने अशासकीय संगठनों (एनजीओ) के हाथों में सौंप रखी थी। बीते वर्षों में स्वच्छता से जुड़े करीब 300 करोड़ रुपए इनके जिम्मे थे। हैरत है कि नगर निगम प्रशासन की ओर से इनकी पुख्ता मॉनीटरिंग की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई। एनजीओ के भरोसे डॉक्यूमेंटेशन का काम था। मॉनीटरिंग नहीं हुई और आधे दस्तावेज भेजने के कारण भोपाल को नंबर भी आधे ही मिले। ऐसे में करोड़ों रुपए तो खर्च हुई, लेकिन काम गुणवत्ताहीन हुए या फिर हुए ही नहीं। इसका नतीजा ये रहा कि राष्ट्रीय स्तर स्वच्छता में हमारी रैंकिंग घट गई।

ऐसे समझें एनजीओ के काम
1. व्यक्तिगत शौचालय
शहर में 33 हजार व्यक्तिगत शौचालय तय किए। प्रति शौचालय 13,600 रुपए की राशि मंजूर हुई। काम सात एनजीओ को दिया। 50 करोड़ एनजीओ के जेब में गए।
कितना हुआ: निगम का दावा है कि 33 हजार शौचालय बने हंै।
खामियां: एनजीओ ने काम लेकर लोकल ठेकेदारों को दिए। उन्होंने तय डिजाइन की बजाय कम खर्च वाले बनाए। ये किसी काम नहीं हैं।
2. वेस्ट कलेक्शन
हर घर से कचरा एकत्रित हो इसे सुनिश्चित करना था।
कितना हुआ: शहर के कई हिस्सों में 60 से 70 फीसदी ही कलेक्शन हो रहा है। डेढ़ करोड़ के करीब सालाना अतिरिक्त खर्च किया गया।
खामियां: अब भी शहर में 388 स्लम हैं, जहां कचरा हर घर से कलेक्ट नहीं हो रहा। एनजीओ को निगमकर्मियों की तो एनजीओ की अफसरों को मॉनीटरिंग करनी थी। हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा।

3. घर पर खाद बनाना
हर घर में कंपोस्ट यूनिट देनी थी ताकि गीले कचरे से खाद बने।
कितना हुआ: एनजीओ के माध्यम से 20 हजार घरों में ये यूनिट लगाने थे, लेकिन लगाए नहीं जा सके। एक करोड़ की राशि एनजीओ को दिलाई गई।
खामियां: जबरिया यूनिट रखवाए गए। एनजीओ ने लोगों को तकनीकी जानकारी नहीं दी। इससे ये आम डस्टबिन बनकर रह गए।
4. कचरा अलग कराना
हर व्यक्ति को गीले और सूखे कचरे से जुड़ी जानकारी देना, ताकि वे इसे अलग रखने के लिए प्रेरित हों।
कितना हुआ: दो साल में 10त्न ही जागरुकता बढ़ी। निगम से इसके नाम पर 70 लाख खर्च हुए।
खामियां: जिन एनजीओ के हाथ में ये काम था, उन्होंने दिखावटी रैलियां, जागरूकता कार्यक्रम कराए। शहर के 90 फीसदी क्षेत्र में इसे लेकर कोई जमीनी काम नजर नहीं आया।
5. मशीनों से सफाई
शहर की मुख्य सड़कों की धुलाई और सफाई मशीनीकृत करना। 30 करोड़ में पांच साल के लिए निजी एजेंसी को काम दिया।
कितना हुआ: दावा है कि रात में ये मशीनें सफाई करती हंै।
खामियां: ये काम स्मार्ट सिटी के माध्यम से कराया गया। स्थिति ये है कि लिंक रोड और वीआइपी रोड पर सफाई का दावा किया गया, लेकिन 11 बजे तक भी सफाई शुरू नहीं हो पाई थी।

15 एनजीओ ने की स्वच्छता में कमाई
नगर निगम से अभी सात बड़े और आठ स्थानीय स्तर के एनजीओ जुड़े हैं। काम के आधार पर इन्हें भुगतान होता है। बीते वर्षों में करीब 300 करोड़ भुगतान इन्हें किया जा चुका है।

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