तर्क दिया जाता है कि छात्रों और मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पताल में दी जा रही सुविधाओं के मुकाबले आमदनी नहीं हो रही है। वर्ष 2016 की बात करें तो निजी मेडिकल कॉलेजों ( Medical college ) की फीस 3 से चार लाख के बीच थी, जो इस साल 12 लाख के करीब पहुंच गई है।
छात्रों का आरोप है कि उनसे फीस और सुविधाओं के नाम पर लाखों रुपए ( MBBS fees ) लिए जा रहे हैं, लेकिन दावे के अनुसार उन्हें कुछ नहीं मिलता।
इधर, कॉलेज इसी वजह से सवर्ण वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की सीटें बढ़ाने को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। यह हाल तब है जब मुख्यमंत्री मेधावी छात्र योजना और जनकल्याण योजना के छात्रों की फीस का खर्च सरकार उठाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य और केन्द्र सरकार को इन संस्थानों में 10% आरक्षण और सीटें बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
कॉलेज | वर्ष 2018 | वर्ष 2019 |
चिरायु मेडिकल कॉलेज, भोपाल | 9.35 लाख | 11.66 लाख |
एलएन मेडिकल कॉलेज, भोपाल | 9.35 लाख | 11.55 लाख |
श्री अरबिंदो इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, इंदौर | 9.53 लाख | नहीं बढ़ी |
इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर | 9.35 लाख | 11.15 लाख |
पीपुल्स कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेस, भोपाल | 9.40 लाख | 11.24 लाख |
आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज, उज्जैन | 8.33 लाख | 8.58 लाख |
बीच सत्र में बढ़ा देते हैं फीस
इंदौर के निजी मेडिकल कॉलेज मेें एमबीबीएस थर्ड इयर के छात्र सचिन गुप्ता का कहना है कि बीेते साल उनके कॉलेज ने दाखिला देने के बाद फीस बढ़ा दी थी। बच्चों ने इसकी शिकायत चिकित्सा शिक्षा विभाग से की इसके बावजूद फीस कम नहीं हुई।
बिना सुविधा भी पैसा
एमबीबीएस सेकंड ईयर के छात्र राकेश अहिरवार ने बताया कि उनके कॉलेज में ट्रासंपोर्ट फीस के रूप में हर साल मोटी रकम वसूली जाती है। मजे की बात यह है कि मैं बस का उपयोग नहीं करता, लेकिन फीस भरना अनिवार्य है। इसी तरह के अन्य शुल्क वसूले जाते हैं।
सीधी बात- आलोक चौबेओएसडी, प्रवेश एवं शुल्क विनियामक आयोग …
– निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस किस आधार पर बढ़ाई जाती है?
: कॉलेजों के खर्चें और आमदनी को देखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक ग्रोथ और डवलपमेंट के लिए हर साल फीस 6 से 15 प्रतिशत बढ़ाई जा सकती है। हम 10 प्रतिशत बढ़ाते हैं।
– फीस बढ़ाने ऑडिट रिपोर्ट जरूरी है,लेकिन मेडिकल कॉलेज सिर्फ एफिडेविट जमा करते हैं?
: नहीं, मेडिकल कॉलेजों को ऑडिट रिपोर्ट ही देनी होती है, अगर कोई कॉलेज लास्ट रिपोर्ट नहीं देता तो एक साल का इम्प्लीमेंटेंशन और डवलपमेंट के आधार पर दस फीसदी फीस बढ़ सकती है।
– मेडिकल कॉलेज जो ब्यौरा दे रहे हैं, उसे जांचा जाता है?
: आरजीपीवी और एमसीआई जांच करती है। हम इनकी रिपोर्ट को ही आधार मानकर आगे की कार्रवाई कर लेते हैं।
इधर, मेडिसिन प्रोसेसिंग यूनिट घोटाले में उलझ गए आइएफएस बीबी सिंह :-
वहीं दूसरी ओर रीवा में हुए मेडिसिन प्रोसेसिंग यूनिट के घोटाले में आइएफएस एसोसिएशन के अध्यक्ष बीबी सिंह उलझ गए हैं। विभाग के वित्तीय सलाहकार की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि मेडिसिन यूनिट के निर्माण और मशीनरी खरीदते समय नियमों का पालन नहीं किया गया है। विभाग सिंह को आरोप पत्र जारी करने की तैयारी कर रही है। वर्तमान में सिंह बांस मिशन के संचालक हैं।
खाद्य प्रसंस्करण के निर्माण के लिए एक करोड़ रुपए की स्वीकृत दी गई थी, लेकिन तत्कालीन सीसीएफ ने अपने स्तर पर 1.77 करोड़ रुपए की स्वीकृति दे दी थी। उन्होंने उपकरण खरीदी के लिए बिना टेंडर के 2.77 करोड़ रुपए की मशीन और 16 लाख रुपए का जनरेटर खरीदी की स्वीकृति प्रबंध संचालक जिला यूनिट रीवी को दे दी थी।
– बीबी सिंह, संचालक, बांस मिशन यह मामला शासन स्तर पर चल रहा है। शासन को ही आरोप पत्र जारी करना है।
– जेके मोहंती, पीसीसीएफ, वन बल प्रमुख