शहीद भवन में प्रस्तुत नाटक सरोजनी वर्मा द्वारा अनुवादित रहा। वर्ष 1971 में सत्यदेव दुबे के निर्देशन में ‘शांतता ! कोर्ट चालू आहे के नाम से इस नाटक पर मराठी फिल्म भी बनी थी। फिल्म में अमरीश पुरी, अमोल पालेकर मुख्य भूमिका में थे। वहीं हिंदी भाषा में भी वर्ष 2017 में रितेश मेनन के निर्देशन में ‘खामोश… अदालत जारी है नाम से बनी इस फिल्म में नंदिता दास, स्वानंद किरकिरे, सौरभ शुक्ला मुख्य भूमिका में थे।
…और शुरू होता है नाटक के अंदर नाटक
दरअसल, यह नाटक महज एक नाटक नहीं है, यह एक अकेली स्त्री की जिंदगी में समाज की किस हद तक घुसपैठ होती है और यही समाज कैसे क्रूरता की हद तक असंवेदनशील हो सकता है, इसका दस्तावेज भी है। मजाक में शुरू हुई एक कोर्ट की कार्यवाही कैसे एक महिला के लिए मानसिक प्रताडऩा वाला खेल बन जाती है, यह नाटक इस का इसका परत दर परत खुलासा है।
नाटक में मुख्य कैरेक्टर्स के नाम हैं मिस लीला बेणारे, सामंत, सुखात्मे, पोंक्षे, काशीकर। यह सब लोग एक नाटक मंडली के सदस्य हैं। मुंबई से एक छोटे से कस्बे में नाटक करने आ पहुंचे हैं। नाटक के मंचन में अभी समय है तब तक टाइम पास के लिए एक झूठ-मूठ का मुकदमा खेलने का प्लान बनता है। सब राजी हो जाते हैं। मिस बेणारे को आरोपी की भूमिका मिलती है।
बाकी पात्रों का चुनाव भी फौरन हो जाता है। सुखात्मे वकील का काला कोट चढ़ा लेते हैं, तो काशीकर जज की कुर्सी पर काबिज हो जाते हैं। बाकी सब लोग गवाह वगैरह की भूमिका में फिटर हो जाते हैं, और शुरू होता है नाटक के अंदर नाटक।
चौराहे पर उड़ाते हैं व्यक्तिगत जिंदगी के परखच्चे लीला बेणारे पर भ्रूण-हत्या का आरोप आरोप तय होता है। लीला बेणारे निश्ंिचत हैं कि ये सब मजाक चल रहा है। उसे नहीं पता कि ये सब प्लान कर के हो रहा है। वो सब मजाक में लेती है। केस आगे बढ़ता है, गवाहियां होती है, बेणारे सारी प्रक्रिया को हंसी में उड़ाती हुई चलती है। बाकियों से ये बर्दाश्त नहीं होता।