मध्यप्रदेश सरकार का आरोप है कि उसकी ओर से जा रहे पानी का गुजरात सरकार संग्रह कर रही है, जिस कारण मध्यप्रदेश के कई गांव डूब क्षेत्र में जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के नर्मदा घाटी मंत्री सुरेंद्र बघेल के मुताबिक मध्यप्रदेश के हितों से समझौता नहीं करेंगे।
गंदी राजनीति न करें-रूपाणी
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने गुजरात के गांधी नगर में शनिवार को मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ और नर्मदा घाटी विकास विभाग के मंत्री सुरेंद्र सिंह बघेल पर नर्मदा पानी की सप्लाई मामले में ‘गंदी राजनीति’ करने का आरोप लगाया है। मध्य प्रदेश की ओर से गुजरात को नर्मदा के पानी की आपूर्ति रोकने की चेतावनी के बाद गुजरात के सीएम विजय रूपाणी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि पानी की किल्लत के इस वक्त में कांग्रेस को पानी के नाम पर कोई गंदी राजनीति नहीं करनी चाहिए। यह बचकाना, दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक, राजनीति प्रेरित और बदनीयतीपूर्ण है। रूपाणी ने कहा कि मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गंदी राजनीति खेलने का प्रयास कर रही है। लोकसभा चुनाव में जबरदस्त पराजय के बाद कांग्रेस हताश हो गयी है।
-40 साल में नर्मदा जल के बंटवारे को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ लेकिन कांग्रेस की सरकार ऐसा करने का प्रयास कर रही है। -सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित नर्मदा नियंत्रण प्राधिकार की तरफ से निर्धारित व्यवस्था के अनुरूप परियोजना से जुड़े चारों राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के पानी के हिस्से में वर्ष 2024 तक कोई बदलाव संभव नहीं है।
-मप्र सरकार को पानी की कमी वाले इस वक्त में सौहार्द्रपूर्ण तरीके से मामले को हल करना चाहिए। उसके बर्ताव से गुजरात की जनता भी दुखी है।
मध्यप्रदेश के पास दूसरा विकल्प नहीं
मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि उसके पास गुजरात का पानी बंद करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है। सूत्रों के मुताबिक जब गुजरात सरकार करार के मुताबिक काम नहीं कर रही है तो उसे पानी क्यों दिया जाए। मध्यप्रदेश की सरकार का आरोप है कि बिजली उत्पादन के लिए दिए जाने वाले पानी को गुजरात संग्रह कर रही है। मध्यप्रदेश सरकार का यह भी आरोप है कि गुजरात सरकार मध्यप्रदेश के नागरिकों का हित नहीं चाहती है।
ये है अंदर की बात
-गुजरात सरकार ने बांध पूरी तरह भरने के लिए मध्यप्रदेश से पानी मांगा था।
-दो साल पहले दिल्ली में हुई बैठक में मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार के बीच नर्मदा बांध को भरने को लेकर सहमति बन गई थी।
-दोनों राज्यों और केंद्र में तब बीजेपी की सरकार थी।
-सहमति के अनुसार गुजरात को पानी दिया जाने लगा। लेकिन, गुजरात के पानी संग्रह करने से मध्यप्रदेश के कई गांव डूब क्षेत्र में आने लगे।
-इसी स्थिति के बाद मध्ययप्रदेश सरकार ने गुजरात का पानी रोकने का निर्णय लिया।
बैठक छोड़कर चले गए थे अधिकारी
इससे पहले गुरुवार को इंदौर में हुई नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक में अफसरों ने प्राधिकरण पर गुजरात सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया और बैठक छोड़कर चले आए। उन्होंने आपत्ति जताते हुए कहा कि डेढ़ साल पहले मध्यप्रदेश के हिस्से का पानी गुजरात सरकार ने ले लिया है, लेकिन उसका समायोजन नहीं किया गया। इससे अलावा पानी की मात्रा तय करने में भी भेदभाव का आरोप लगाया।
पिछली बैठकों में भी थी तनातनी
एक सप्ताह पहले भी दिल्ली में बांध भरने के मामले में बुलाई गई मीटिंग में भी मध्यप्रदेश के अफसर नहीं पहुंचे थे। जबकि इंदौर में जलाशय नियमन समिति की बैठक में मध्यप्रदेश के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान सरकार के अफसर शामिल हुए थे। मप्र के अधिकारियों ने कहा कि 3 और 27 मई को बैठक में मप्र सरकार के पक्ष को नजरअंदाज किया गया और बैठक के मिनिट्स में तोड़मरोड़ की।
ऐसे होता है पानी का बंटवारा
-नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के मुताबिक गुजरात को 9 mfa, मप्र को 18.25 mfa, राजस्थान को 0.5 और महाराष्ट्र को 0.5 mfa पानी के उपयोग का अधिकार है।
-नर्मदा में 27 mfa पानी आमतौर पर वर्षभर में रहता है।
-सालभर नदी का प्रवाह बने रखने के लिए 8.12 mfa पानी छोड़ना जरूरी होता है।
– बांध क्षमता 138 मीटर है, लेकिन निर्माण के बाद अधिकतम 130 मीटर तक ही पानी भरा जा सका है।