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बड़ी खबर: अब व्यापमं घोटाले की फाइल खोलेगी सरकार, फंस सकते हैं कई दिग्गज नेता

locationभोपालPublished: Jan 05, 2019 02:56:53 pm

Submitted by:

Manish Gite

बड़ी खबर: अब व्यापमं घोटाले की फाइल खोलेगी सरकार, फंस सकते हैं कई दिग्गज नेता

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बड़ी खबर: अब व्यापमं घोटाले की फाइल खोलेगी कमलनाथ सरकार, फंस सकते हैं कई दिग्गज नेता

भोपाल। मध्यप्रदेश में जल्द व्यापमं का जिन्न बाहर आ सकता है। क्योंकि कमलनाथ सरकार ने देश के सबसे बड़े शिक्षा घोटाले से जुड़े लोगों की फाइलें खोलने की तैयारी कर ली है। इस बड़े घोटाले में जांच के दौरान ही करीब 48 से अधिक आरोपियों या इस घोटाले से जुड़े लोगों की जान जा चुकी है। कांग्रेस ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी व्यापमं घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया था। माना जा रहा है कि व्यापमं की फाइल खुलते ही कई दबे हुए राज उजागर हो सकते हैं।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही पिछली सरकार के घोटालों की फाइलें खुलने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। कमलनाथ सरकार के गृहमंत्री बाला बच्चन ने इस घोटाले से जुड़े लोगों को नहीं छोड़ने की बात कही है। फाइल ओपन होने के बाद कई दबे राज और दिग्गज नेताओं के लिप्त होने का खुलासा हो सकता है।

 

गृहमंत्री बच्चन ने क्या कहा
सरकार बदलने के साथ ही एक बार फिर व्यापमं की जांच कराए जाने की मांग तेज हो गई थी। कमलनाथ सरकार में गृहमंत्री का कार्यभार ग्रहण करने के बाद बाला बच्चन ने शुक्रवार को पत्रकारों सेस चर्चा करते हुए कहा कि व्यापमं घोटाले में जो भी लिप्त हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। सरकार आवश्यक कार्रवाई करेगी।

शिवराज पर भी लगे आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर इस बहुचर्चित शिक्षा घोटाले में लिप्त रहने का आरोप कांग्रेस कई बार लगा चुकी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने कहा था पहली बार जब्त हुए डेटा में व्यापमं के माध्यम से प्रवेश कराने वाले सिफारिशकर्ता के तौर पर 48 बार शिवराज का नाम और मिनिस्टर-1, मिनिस्टर-2 और मिनिस्टर-3 के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का नाम भी शामिल है। लेकिन cbi उन्हें बचा रही है। cbi तथ्यों की अनदेखी कर रही है, इसीलिए दिग्विजय सिंह ने मुकदमा दायर किया। दिग्विजय ने कुल 27,000 पन्नों के दस्तावेज पेश कर दिए। मध्यप्रदेश के इस शिक्षा घोटाले ने अन्य प्रदेशों के लोगों को भी प्रभावित किया। क्योंकि कई परीक्षार्थी दूसरे प्रदेशों के भी थे और घोटाले के कई आरोपी भी।

 

अब बदल चुका है नाम
पिछली सरकार को सबसे ज्यादा बदनामी व्यापमं घोटाले से मिली थी। इसके बाद भाजपा सरकार ने व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) का नाम ही बदल दिया था। उसका नाम प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीइबी) हो गया था।

यह है व्यापमं की कहानी
44 साल पहले जनवरी 1970 में व्यापम के इस सफर की शुरुआत भोपाल से हुई। पहले इसका नाम प्री-मेडिकल टेस्ट बोर्ड था। इसके जरिए मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस करने के इच्छुक छात्र-छात्राओं का चयन किया जाता था।
1981 में गठित प्री-इंजिनियरिंग बोर्ड को प्री-मेडिकल बोर्ड के साथ 1982 में मर्ज कर दिया गया। दोनों को मिलाकर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड का गठन किया गया। इसे व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) नाम दिया गया।
2007 में मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड ऐक्ट पारित हुआ।
इसके बाद 2000-12 में पूरे मध्य प्रदेश में करीब 55 मामले दायर हुए, जिनमें परीक्षा देने वाले की जगह पर कोई और ने ही परीक्षा दी थी।
7 जुलाई 2013 को पहली बार व्यापमं घोटाला दुनिया के सामने आया।इंदौर की क्राइम ब्रांच ने 20 ऐसे लोगों पर प्रकरण दर्ज किया। इनमें परीक्षा देने वालों के स्थान पर किसी दूसरे छात्र ने परीक्षा दी थी।
इसके बाद 16 जुलाई 2013 को व्यापमं घोटाले में लिप्ट मास्टर माइंड जगदीश सागर गिरफ्त में आया। अब वो जमानत पर बाहर है।

व्यापम घोटाले की जांच 26 अगस्त 2013 को STF को सौंपी गई।
9 अक्टूबर 2013 को प्री-मेडिकल टेस्ट की परीक्षा पास करने वाले 345 छात्रों का रिजल्ट रोक दिया गया।

18 दिसंबर 2013 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पर भी केस दर्ज कर लिया गया।
20 दिसंबर 2013 को तत्कालीन भाजपा उपाध्याक्ष उमा भारती के खिलाफ भी सीबीआई जांच की मांग उठी।

15 जनवरी 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बयान देना पड़ा। तब उन्होंने विधानसभा में कहा था कि 2007 से हुई 1.47 लाख नियुक्तियों में से केवल 1,000 गैर-कानूनी नियुक्तियां पाई गई हैं। इसके बाद इस आंकड़े में सुधार करते हुए गैर-कानूनी भर्तियों की संख्या 200 से कुछ ही ऊपर बताई गई। तब तक किसी भी कार्रवाई की पहल नहीं हुई थी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री पर भी घोटाले के छींटे पड़ने पर 2 जुलाई 2014 को उन्होंने कहा था कि यदि वे दोषी पाए जाते हैं तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे।

इसके बाद 5 नवंबर 2014 को जबलपुर हाईकोर्ट ने SIT गठित की, जिसे व्यापमं मामले की जांच सौंपी गई।
16 फरवरी 2014 को एक बार फिर इस मुद्दे पर बवाल हो गया, जब विपक्षी दल कांग्रेस ने एक विसल ब्लोअर के हवाले से कुछ सूचनाएं जारी कीं। कांग्रेस का आरोप था कि stf मुख्यमंत्री को बचाने का प्रयास कर रही है। इसके बाद इस विसल ब्लोअर की पहचान प्रशांत पांडे के रूप में हुई। पांडे एक साइबर विशेषज्ञ थे, जिनकी सेवाएं stf ने मामले के दौरान ली गई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि व्यापमं के प्रिंसिपल ऐनलिस्ट नितिन मोहिंद्रा के कंप्यूटर से लिए गए डेटा के साथ छेड़छाड़ की गई है। पांडे का आरोप था कि असली डेटा में 64 स्थानों पर मुख्यमंत्री का नाम था। छेड़छाड़ के बाद मुख्यमंत्री का नाम हटा दिया गया और अन्य लोगों का नाम जोड़ दिया गया।
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