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जिस आयुर्वेदिक डॉक्टर ने खत्म किया ज्योतिरादित्य का जादू, उनके पिता रहे हैं सिंधिया परिवार के ‘वफादार’

locationभोपालPublished: May 26, 2019 05:52:53 pm

Submitted by:

Pawan Tiwari

ज्योतिरादित्य सिंधिया और केपी यादव ऐसे बने सियासी दुश्मन

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भोपाल. आजादी के बाद गुना-शिवपुरी सीट पर कभी भी सिंधिया परिवार की हार नहीं हुई। चेहरे जरूर बदले लेकिन जीत सिंधिया राजघराने के ही किसी न किसी सदस्य की हुई। लेकिन कांग्रेस और सिंधिया राजवंश के इस अभेद किले को एक आय़ुर्वेदिक डॉक्टर ने भेद दिया है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं गुना के नवनिर्वाचित सांसद केपी यादव की है। केपी यादव अपने नाम के आगे डॉ लिखते हैं। शायद कई लोगों को पता नहीं होगा कि वो वाकई डॉक्टर हैं या पीएचडी धारी। हम आपको बताते हैं कि वह पेशे से एक आयुर्वेदिक फिजिशियन हैं। जनवरी 2018 तक केपी यादव की गिनती ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास लोगों में होती थी।
उस इलाके के लोगों के अऩुसार केपी यादव को ज्योतिरादित्य सिंधिया का लेफ्टिनेंट कहा जाता था। केपी यादव अशोकनगर जिले के रहने वाले हैं। गुना में ज्योतिरादित्य के सांसद प्रतिनिधि के रूप में वो काम करते थे। उनकी चाहत मुंगावली विधानसभा से उपचुनाव लड़ने की थी। महाराज से उन्होंने टिकट मांगी। लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। उसके बाद से ही केपी नाराज हो गए है।
2018 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी छोड़ दी। उसके बाद केपी यादव बीजेपी में शामिल हो गए। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें मुंगावली से टिकट दिया लेकिन वे चुनाव हार गए।

इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी केपी यादव पर बीजेपी ने दांव लगाया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ गुना से उन्हें मैदान में उतार दिया। किसी को उम्मीद नहीं दी थी कि केपी सिंधिया के किले को भेद पाएंगे। यहां तक की पार्टी नेताओं को भी यकीन नहीं था। लेकिन जब नतीजे आएं तो केपी यादव को 6,14,049 और सिंधिया को 4,88,500 इतना वोट मिले। केपी यादव 1,25,549 वोट से चुनाव जीत गए।

वहीं, केपी यादव का परिवार शुरू से ही सिंधिया घराने का वफादार रहा है। केपी यादव के पिता रघुवीर यादव भी कांग्रेस के नेता था और चार बार जिला पंचायत के अध्यक्ष रहे हैं। सिर्फ यही नहीं केपी यादव जैसे ज्योतिरादित्य के करीबी थे, ठीक उसी तरह रघुवीर यादव भी ज्योतिरादित्य के पिता माधव राव सिंधिया के करीबी रहे हैं।
दरअसल, केपी यादव के मैदान में उतरने के बाद सिंधिया निश्चिंत हो गए थे, उनका वहा मुकाबला कहां से कर पाएंगे। बताया जाता है कि ज्योतिरादित्य की यह सोच उन्हें ले डूबा। वो पश्चिमी यूपी पार्टी के लिए काम कर रहे थे और केपी यहां जमीनी स्तर पर मेहनत कर रहे थे। साथ ही लंबे अर्से तक सिंधिया के साथ काम करने की वजह से उऩकी कमजोरियों से भी वह बखूबी वाकिफ थे। उन्हीं चीजों पर काम कर केपी ने इस बार गुना की बाजी पलट दी।
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