ऐसे होता है एजेंसियों का काम देश के 5000 से अधिक शहरों में स्वच्छता रैंकिंग का जिम्मा लेने वाली बड़ी कंपनियां स्थानीय स्तर पर ही कर्मचारी तय कर लेती है। बीते वर्ष कार्वी के कर्मचारी की नियुक्ति से इसे समझा जा सकता है। ऐसे में ये स्थानीय अधिकारियों से भलीभांति परिचित होते हैं ओर उनके हिसाब से ही पूरा निरीक्षण करते हैं। इतना नहीं इन एजेंसियों ने बीत एक साल से निगम में अपने तीन कर्मचारी नियुक्त कर रखे हैं। इनका पूरा भुगतान निगम ही करता है।
नियम ये कि सर्वेयर निगम अफसरों नहीं देंगे जानकारी, लेकिन पूरा इंतजाम निगम ही कर रहा
स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में स्पष्ट है कि सर्वेक्षण एजेंसियां अपने हिसाब से शहर में जाकर सर्वे करेगी। इसकी जानकारी नहीं देगी। इतना ही नहीं, निगम अफसरों तक को नहीं बताएंगे या फिर उनका साथ नहीं लेंगे, बावजूद इसके ऑब्जर्वर श्याम दुबे अपर आयुक्त एमपी सिंह के साथ पूरे समय भ्रमण करते रहे। निगम ने उन्हें अंडरग्राउंड डस्टबिन, पेसिफिक ब्ल्यू कॉलोनी का कचरा प्रबंधन, न्यू मार्केट का सर्वसुविधा युक्त सुलभ शौचालय से लेकर भानपुर में प्लास्टिक वेस्ट सेंटर का ही निरीक्षण कराया। जहां गंदगी या कचरा है वहां नहीं ले गए।
स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में स्पष्ट है कि सर्वेक्षण एजेंसियां अपने हिसाब से शहर में जाकर सर्वे करेगी। इसकी जानकारी नहीं देगी। इतना ही नहीं, निगम अफसरों तक को नहीं बताएंगे या फिर उनका साथ नहीं लेंगे, बावजूद इसके ऑब्जर्वर श्याम दुबे अपर आयुक्त एमपी सिंह के साथ पूरे समय भ्रमण करते रहे। निगम ने उन्हें अंडरग्राउंड डस्टबिन, पेसिफिक ब्ल्यू कॉलोनी का कचरा प्रबंधन, न्यू मार्केट का सर्वसुविधा युक्त सुलभ शौचालय से लेकर भानपुर में प्लास्टिक वेस्ट सेंटर का ही निरीक्षण कराया। जहां गंदगी या कचरा है वहां नहीं ले गए।
सर्वे एजेंसियां और निगम के अफसर कैसे काम कर रहे हैं, ये नहीं कह सकता, लेकिन इतना जरूर है कि जमीन पर सफाई नजर आना चाहिए। इसके लिए मैं अपने स्तर पर लगातार काम कर रहा हूं।
– आलोक शर्मा, महापौर
– आलोक शर्मा, महापौर