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दीपावली पर किए जाने वाला गोंड जनजाति का ठाठ्या नृत्य रहा आकर्षण का केंद्र

locationभोपालPublished: Jun 10, 2018 01:34:06 pm

Submitted by:

hitesh sharma

वर्षगांठ समारोह के चौथे दिन हुईं विभिन्न प्रस्तुतियां
 

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कस्बे में एेतिहासिक नाहर नृत्य इस वर्ष 15 मार्च को होगा। यह 405वां आयोजन है। नाहर नृत्य कस्बे में शेष सहाय धाम व दशहरा चौक में मनाया जाएगा।

भोपाल। मप्र जनजातीय संग्रहालय में चल रहे पांचवे वर्षगांठ समारोह के चौथे दिन मप्र का गोंड जनजातीय ठाठ्या नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा। ठाठ्या नृत्य गोंड जनजाति द्वारा दीपावली पर किया जाने वाला नृत्य है। संग्रहालय सभागार में लगभग 20 कलाकारों ने ठाठ्या नृत्य प्रस्तुति दी।

ठाठ्या नृत्य के बाद असम, मेघालय और अरुणाचल के नृत्यों की प्रस्तुतियां हुईं। असम से आए कलाकारों ने असम की लगभग हर जनजाति द्वारा किया जाने वाले नृत्य तिवा की प्रस्तुति दी। तिवा नृत्य कृषि उत्सव के रूप में किया जाता है। इसके बाद बोडो नृत्य और हजौंग नृत्य भी पेश किए।

वहीं मेघालय से आए कलाकारों ने वंगला और रुगाला नृत्य की प्रस्तुति दी। रुगाला मेघालय का लोक नृत्य है यह नृत्य फसल की कटाई के बाद उत्सव के रूप में किया जाता है। अरुणाचल से आये कलाकारों ने निशी जनजाति का प्रमुख नृत्य बुया और रिखम्पडा नृत्य प्रस्तुत किया। जिस संगीत पर यह नृत्य किया जाता है वह पर्वत, नदियों और जंगलों से प्रेरित है।

त्रियात्री में दिखाया युवा होते बच्चों के मन में चलने वाला द्वंद्व
वहीं दिन के वक्त संग्रहालय सभागार में पार्वती मेनन द्वारा निर्देशित बाल फिल्म त्रियात्री का प्रदर्शन हुआ। फिल्म के केंद्र में रवि, आदि और सूर्य तीन होनहार छात्र हैं, जो हाईस्कूल की पढाई के बाद अच्छे कालेज में दाखिला चाहते हैं। लेकिन तीनों ही छात्रों का दाखिला कुछ अंकों से नहीं हो पाता।

फिल्म के माध्यम से युवा होते बच्चों के मन में चलने वाले द्वन्द को प्रस्तुत किया गया है। करीब दो घंटे पांच मिनट की इस फिल्म के माध्यम से आत्मविश्वास से परिपूर्ण होने और प्रयास करते रहने का सन्देश दिया गया। फिल्म के बाद किस्सागोई शृंखला के तहत भोपाल के रमेश दवे ने अपने अनुभव साझा करने के साथ कई किस्से-कहानी को श्रोताओं से साझा किए।

उन्होंने बताया की यूनिसेफ में नौकरी करने के दौरान जब वह ऑस्ट्रेलिया के गांवों के स्कूलों में गए तो बच्चों ने हिन्दुस्तान के कई किस्से सुनने की जिज्ञासा उनसे की, जैसे ताजमहल और सफेद शेर के किस्से। रमेश दवे ने श्रोताओं को कर्तव्य लम्बुजी की कहानी भी सुनाई।

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