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MP में चारे का संकट गहराया… अब मवेशी बेच रहे पशुपालक, कोई भूसे के लिए खेत के खेत खरीद रहा

राज्य में कई जिलों में एक से दूसरे जिले तो सरहदी राज्यों में चारा ले जाने पर रोक

भोपालApr 01, 2022 / 01:21 am

रविकांत दीक्षित

MP में चारे का संकट गहराया... अब मवेशी बेच रहे पशुपालक, कोई भूसे के लिए खेत के खेत खरीद रहा

हार्वेस्टर से फसल कटाई के चलते भूसे की किल्लत और बढ़ गई है।

श्याम सिंह तोमर@भोपाल. मध्यप्रदेश में चारा संकट गहरा गया है। राज्य के कई जिले ऐसे हैं, जहां प्रशासन ने एक से दूसरे जिले में सूखा चारा लाने-भेजने पर रोक लगा दी है। सूबे से लगे पड़ोसी पांच राज्यों खासतौर पर राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात में भी चारा परिवहन फिलहाल रोका गया है।

चारे के दाम उछले
पिछले एक महीने के दरमियान सूखे चारे के थोक भाव में करीब तीन गुना से चार तक उछाल आया। सामान्य दिनों में जो चारा थोक में 2 से 4 रुपए किलो तक मिल जाता था, वह 12 से 15 रुपए तक बिक गया। रबी सीजन की फसलों की कटाई के बाद भी दरों में आंशिक कमी आ पाई है। सूखे चारे के भाव अभी भी 6 से 8 रुपए प्रतिकिलो चल रहे हैं। इसका सीधा असर पशु पालकों पर हुआ, जिन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक तो सूखा-हरा चारा महंगा खरीदने को मजबूर हैं तो गर्मी का मौसम आते ही पशुओं का दूध उत्पादन भी घट गया है।

आंकड़ों से समझें संकट
मध्य प्रदेश राज्य पशुपालन एवं डेयरी विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में कुल पशुधन 406.37 लाख है। प्रदेश में कुल पशुधन के लिए सालभर में अनुमानित 1186 लाख मैट्रिक टन हरे चारे की और 604 लाख मैट्रिक टन सूखे चारे की आवश्यकता पड़ती है। इस हिसाब से अगर उत्पादन की बात की जाए तो प्रदेश में सूखे चारे का उत्पादन पर्याप्त है लेकिन पड़ोसी राज्यों में परिवहन के कारण संकट की स्थिति बनी। हरे चारे के उत्पादन की स्थिति अच्छी नहीं है। कुल 680 लाख मैट्रिक टन हरा चारा उगाया जाता है जो मांग की तुलना में 57 प्रतिशत कम है।

MP में चारे का संकट गहराया... अब मवेशी बेच रहे पशुपालक, कोई भूसे के लिए खेत के खेत खरीद रहा

पांच कारण, जिनसे पशुओं के भूखे मरने की नौबत आ गई

1. तकनीक ने काम आसान किया पर समस्या ज्यादा बढ़ाई
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में कम्बाइंड हार्वेस्टर से गेहूं कटाई का ट्रेंड तेजी से बढ़ा। काम आसान तो समय की बचत भी हुई लेकिन दूसरी समस्या खड़ी हो गई। भूसा जो पुशओं का सबसे पौष्टिक भोजन था, उसको सहेजना-संभालने का काम खत्म हो गया।

2. भूसा निकाला नहीं, प्रदूषण बढ़ रहा है सो अलग
केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार की लाख कोशिश के बाद भी किसान खेतों से फसलें काटने के बाद नरवाई यानी पराली जलाने में जुटे हुए हैं। इसके कारण भूसे से चारा बन नहीं रहा और प्रदूषण बढ़ रहा है सो अलग।

3. शासन ने कभी साइलेज बनाने को प्रोत्साहित नहीं किया
मक्का, ज्वार, बाजरा आदि से साइलेज (सूखे चारे की ब्रिक्स) बनाना शासन की प्राथमिकता में शामिल नहीं है। ऐसे में प्रदेश में साइलेजन और सूखे चारे के भण्डारण जैसी व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई।

4. सरसों और धान का रकबा लगातार बढ़ रहा
गेहूं के भूसे की कमी की एक वजह यह भी है कि मध्य प्रदेश में भी अब सरसों और धान का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। इन दोनों की फसलों के दाम गेहूं की तुलना में बेहतर मिलते हैं, जिसके कारण किसानों की पहली पसंद अब ये फसलें हैं।

5. रकबा बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं
लूशन, बरसीम, ओट, सूडान चरी, अफ्रीकन मक्का, हाइब्रिड ज्वार, मक्का, बाजरा, शुगर ग्रेज, न्यूट्रीफीड, नेपियर, हाइब्रिड नेपियर आदि हरी फसलें पशुओं के चारे के लिए बहुत उपयोगी हैं, लेकिन इनका रकबा बढ़ाने की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस वजह से पर्याप्त मात्रा में हरा चारा नहीं मिल रहा।

केस-1… मवेशी औने-पौने दामों पर बेचना शुरू किया
श्योपुर जिले के किसान भगवान सिंह का कहना है कि गेहूं का भूसा और हरा चारा बहुत महंगा हो गया है, जिसे खरीदना हम छोटे पशुपालकों के वश में नहीं रहा। भूसे के दाम आसमान छूने के कारण राज्य के कई गांव के पशुपालकों और किसानों ने अपने मवेशियों को औने-पौने दामों पर बेचना शुरू कर दिया है।

केस-2… बड़े पशुपालकों ने खड़ी फसलें खरीदी
विदिशा जिले की शमशाबाद तहसील के ग्राम रुसल्ली के पशुपालक जगदीश सिंह लोधी का कहना है कि जो पशुपालक सक्षम हैं, वे आस-पास के जिलों या क्षेत्रों में खोजबीन करके खेतों में खड़ी फसल ही खरीद ले रहे हैं। गेहूं निकालकर बेंच देंगे और जो भूसा निकलेगा उसका परिवहन करवाकर सालभर पशुओं को खिलाने के लिए भण्डारित कर लेंगे।

संकट से उबरने की कोशिश कर रहे
शासन ने सभी जिलों में गेहूं की नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगा रखा है ताकि पशुपालक स्ट्रा रिपर से आवश्यकता अनुसार भूसा निकाल सकें। इसी तरह हरे चारे के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए भी किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत चारा फसलों के बीजों का उत्पादन व हरे चारे से साइलेज बनाने की गतिविधि को लिया गया है। इन उपायों को अपनाकर संकट से उबरने की कोशिश है।
-डॉ. एचबीएस भदौरिया, प्रबंध संचालक, मध्य प्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम

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